Greater Noida: ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के बाद अब यमुना प्राधिकरण के खिलाफ किसानों का आंदोलन तेज़ी से आक्रोशित होता जा रहा है। शुक्रवार को भारी संख्या में महिला किसानों ने यमुना प्राधिकरण पर पहुंचकर प्रदर्शन किया और वहां अपना कब्जा जमा लिया। महिलाओं का कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होती, वे यहीं डटी रहेंगी। महिलाओं ने साफ किया है कि अब जल्द ही यमुना प्राधिकरण में चूल्हा जलाया जाएगा।
महिलाओं के हाथ में आंदोलन की कमान
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में पांच दिनों से चल रहे इस आंदोलन में शुक्रवार को महिलाओं ने मोर्चा संभाला। आंदोलन की अध्यक्षता तिलक देवी और संचालन रईसा बेगम द्वारा किया जा रहा है। मौके पर बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद रहीं, जिनमें विमल शर्मा, निर्मला खटाना, पवन नागर, राजबती, कमलेश, क्रांति नागर, जोगेंद्र, पूनम, रीना, गीता, पूजा, सविता, सरिता, बबीता, ललिता, सन्नो देवी, सरोज, संतरा, केला, बर्फी, सुनीता देवी, कृष्णा, किरण देवी, अंजू, सीमा और सीमा राजेश्वरी प्रमुख थीं।
किसानों की प्रमुख मांगें
किसानों ने अपनी मांगों को लेकर प्रशासन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है।
- चार गुना मुआवजा: किसानों का कहना है कि गोरखपुर में हाईवे के लिए चार गुना मुआवजा दिया गया, जबकि गौतमबुद्ध नगर को इससे वंचित रखा गया है।
- सर्किल रेट में बढ़ोतरी: किसानों का आरोप है कि पिछले 10 सालों से सर्किल रेट नहीं बढ़ा है।
- विकसित भूखंड और नए कानूनों का लाभ: किसानों की मांग है कि 10 फीसदी विकसित भूखंड, हाई पावर कमेटी की सिफारिशें, और नए भूमि अधिग्रहण कानून का लाभ उन्हें दिया जाए।
प्राधिकरण और प्रशासन के अधिकारी अब तक कोई ठोस आश्वासन देने की स्थिति में नहीं हैं। किसानों का कहना है कि जब तक शासन स्तर पर निर्णय नहीं लिया जाता, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
दिल्ली तक पहुंचाएंगे अपनी आवाज
किसान नेता जगबीर नंबरदार ने बताया कि यह आंदोलन अब रात-दिन चलेगा। बड़ी संख्या में माताएं और बहनें इसमें शामिल हो रही हैं। यदि उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी मांगे नहीं मानीं, तो वे दिल्ली कूच कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी बात रखने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “यह हमारे हक और ईमान की लड़ाई है, जो अंतिम सांस तक जारी रहेगी। किसी भी कठिनाई से गुजरने के लिए हम तैयार हैं।”
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सरकार से जल्द समाधान की अपील
किसानों का कहना है कि यह आंदोलन केवल मुआवजे के लिए नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व की लड़ाई है। किसानों की यह आवाज़ दिन-ब-दिन तेज़ होती जा रही है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है।