नई दिल्ली। क्या आप किसी ऐसे त्यौहार को जानते हैं जिसमें डूबते हुए सूरज की पूजा होती है, जिसमें नदी में गले तक डूब कर पूजा ही नहीं व्रत भी किया जाता है, ये व्रत भी एक दिन नहीं बल्कि 36 घंटे तक रखा जाता है। इस व्रत को निर्जला व्रत यानी बिना पानी पिए रखा जाता है। इस व्रत के दौरान किसी भी तरह के जाति बंधन को नहीं माना जाता, यानी पूरे गांव के हर समाज और हर तबके के लोग एक साथ नदी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य देव की आराधना करते हैं…!
अगर आप के पास इन सभी सवालों के जवाब हैं तो आप छठ पूजा को काफी करीब से जानते हैं। पूर्वोत्तर भारत में दीवाली के अमूमन हफ्ते भर बाद शुरु होने वाली छठ पूजा खासकर बिहार में सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार माना जाता है। मगर अब ये त्यौहार अपनी सरहदों को लांघ कर बिहार से निकल कर दिल्ली-मुंबई से लेकर पूरे भारत बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। दीगर बात है कि ये सारा आयोजन अपने बच्चों की खुशियों और समृद्धि के ले रखा जाता है।
नाक तक सिंदूर का तिलक लगाए, नदी में आधा डूबे या फिर सिर पर प्रशाद का दौरा उठाए नाचते-गाते आंचलिक गीत गाते पटाखों और गाजे-बाजे के साथ त्यौहार की चमक चेहरे पर संजोए छठ पूजन के लिए जाते हुए लोगों की भीड़ को तो आपने भी सड़क पर नोटिस किया ही होगा। अगर आप बिहार से ताल्लुक रखते हैं तो अपने घर में या फिर खुद आपने भी ठिठुरती ठंड में इस कठिन व्रत को रखा भी होगा और इसकी खुशियों को अपने रिश्तेदारों के साथ संजोया भी होगा।
बिहार में सांस्कृतिक और धार्मिक के अलावा राजनीतिक महत्व के इस त्यौहार की तैयारी मुकम्मल हो चुकी हैं और सोमवार को नहाए-खाए के साथ विधि विधान के साथ छठ पूजा शुरु हो जाएगी। हिंदी पंचांग के अनुसार, छठ पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी यानी छठी तिथि पर मनाया जाता है। यह पर्व हमेशा दीपावली के 6 दिन बाद पड़ता है जो नहाय खाय की परंपरा से प्रारंभ होता है। यह व्रत करने वाले व्रती 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। जिसके बाद छठी मैया की पुजा और सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का समापन होता है।
बिहार के पूर्वी चंपारण के आचार्य श्रीनारायण वाजपेयी बताते हैं कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला यह महापर्व पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है। छठ पूजा पर एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। संतान की सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए इस दिन सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है । इस व्रत में सुबह और शाम के अर्घ्य देने की परंपरा है।
नहाए खाए के साथ शुरु होने वाले इस पर्व में व्रती और महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं और फिर सूर्य देव और छठी मइया की अराधना करती हैं। पौराणिक कथाओं में छठी मइया को सूर्य देव की बहन माना जाता है।
छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय
बिहार के बेतिया के आचार्य इंद्रेश मणि द्विवेदी के मुताबिक चार दिनों तक चलनेवाले इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण कर पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं। ये प्रशाद बांटा भी जाता है।
छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस पूजा में महिलाएं शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ का खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं। महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरु हो जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही सूर्य भगवान और छठी मइया का घर में आगमन हो जाता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानि छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रख कर छठ पूजा का प्रसाद तैयार करती हैं। शाम के समय नए वस्त्र धारण कर परिवार संग किसी नदी या तलाब पर पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देते हैं। तीसरे दिन का निर्जला उपवास रातभर जारी रहता है।
छठ पूजा का चौथा दिन
छठ पूजा के चौथे दिन पानी में खड़े होकर ब्रह्म मुहूर्त में उगते यानी उदयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे उषा अर्घ्य या पारण दिवस भी कहा जाता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं सात या ग्यारह बार परिक्रमा करती हैं। इसके बाद एक दूसरे को प्रसाद देकर व्रत खोला जाता है। 36 घंटे का व्रत सूर्य को अर्घ्य देने के बाद तोड़ा जाता है। इस व्रत की समाप्ति सुबह के अर्घ्य यानी दूसरे और अंतिम अर्घ्य को देने के बाद संपन्न होती है।