मेरठ :- किसानों की आय दोगुनी करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुहिम रंग ला रही है। पश्चिम उप्र के किसान भी परंपरागत खेती को छोड़कर नवाचार में जुट गए हैं। किसानों ने सहफसली खेती करके गन्ने के साथ ही पपीते की खेती शुरू की है। इससे पपीते का उत्पादन को बढ़ ही रहा है, किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हो रही है। कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को प्रेरित कर रहे हैं।
मुजफ्फरनगर के किसान उमेश कुमार 01 एकड़ जमीन में 05 बीघा गन्ने के साथ पपीता लगाया था। इस जमीन से उन्हें 02 लाख रुपए कीमत का 80 कुंतल पपीता प्राप्त हुआ तो लगभग 01 लाख रुपए कीमत पर 300 कुंतल गन्ने की पैदावार हुई। उमेशा ने देखा कि गन्ने की बजाय पपीते की खेती करने से अधिक फायदा है, यदि पपीते की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो निश्चित रूप से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर सहित पश्चिम उप्र के कई इलाकों में गन्ने के साथ बीच का स्पेस बढ़ाकर किसान पपीते की खेती भी कर रहे हैं।
इन इलाकों में हो रही है पपीते की खेती
गन्ना लैंड से मशहूर वेस्ट यूपी में किसानों को पपीते की खेती भाने लगी है। यही कारण है कि किसान गन्ने की खेती के साथ-साथ पपीते की खेती को भी करने लगे हैं। कई किसान ऐसे हैं जो मुनाफे को देखते हुए इसको अपना रहे हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो. डॉ. आरएस सेंगर ने बताया कि किसानों को पपीते की खेती के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद उत्तर प्रदेश के द्वारा विश्वविद्यालय में एक परियोजना चलाई जा रही है जिसमें पपीते के उभयलिंगी पौधों का विकास किया गय। प्रत्येक पेड़ में फल अधिक से अधिक लगने की संभावनाएं बढ़ी है और इससे किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है।
गन्ना लैंड में किसानों के लिए वरदान बनी पपीते की फसल
पपीते के उत्पादन में सबसे बड़ी समस्या नर पौधे को लेकर आती है। नर पौधे पर फल नहीं आता है और कई महीनों के बाद ही उसका पता चल पाता है। इससे किसानों का नुकसान होता है और उनकी मेहनत बेकार चली जाती है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद उत्तर प्रदेश लखनऊ से विस्तृत पोषित परियोजना के अंतर्गत कार्य करते हुए डॉ. सेंगर ने बताया कि उन्होंने टिशु कल्चर के माध्यम से उभयलिंगीय पौधों का विकास करने में काफी सफलता मिली है। पपीते की खेती में यदि नर पौधों की संख्या ज्यादा निकल जाए तो नुकसान किसानों को अधिक होता है। क्योंकि इसमें नर पौधे पर फल नहीं आते हैं। ऐसी स्थिति में अब बाजार में कई ऐसी प्रजातियां आ गई हैं जो उभयलिंगी है। उनकी खेती करने से फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है
पश्चिम उप्र में पपीते की खेती सरधना, खतौली, मवाना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, सहारनपुर, शामली, गाजियाबाद तथा मेरठ की अन्य तहसीलों में बड़े पैमाने पर की जा रही है। विश्वविद्यालय का प्रयास अन्य क्षेत्रों में पपीते की खेती का क्षेत्रफल बढ़ाने का है। पहले पपीते की खेती को लेकर किसानों में कई तरह की भ्रांति थी। उनका मानना था कि वेस्ट यूपी में पपीते की खेती करना मुश्किल भरा काम है, लेकिन अब जागरूक किसान आगे आए हैं और उन्होंने पपीते की खेती प्रारंभ की। यह देखकर आसपास के किसानों और गांव के किसानों को भी यकीन हो गया कि यहां पर पपीते की भी बड़े पैमाने पर खेती की जा सकती है। यदि से फसली खेती के रूप में भी पपीते की खेती की जाए तो भी अच्छे परिणाम मिलते हैं।
प्रो. आरएस सेंगर ने बताया कि विवि द्वारा किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। समस्याओं के समाधान के लिए समय-समय पर खेतों पर जाकर किसानों को जागरूक कर रहे हैं। प्रयास है कि किसानों के द्वार तकनीकी ज्ञान को ले जाकर उनकी आमदनी में इजाफा किया जाए। इसके लिए प्रदेश के वैज्ञानिकों को परिषद द्वारा लगातार सहयोग प्रदान किया जाता है।
पौधे से ही पता चल जाएगा पपीता लगेगा या नहीं
प्रो. सेंगर ने बताया कि पपीते की खेती फलों के अतिरिक्त पपेन के लिए भी की जाती है। यह कच्चे पपीते से सुखाए हुए दूध के रूप में उपलब्ध हो जाता है। पपेन का औषधि के रूप में व्यापक स्तर पर व्यवसायिक इस्तेमाल होता है, जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। आज तेजी से किसान पपीते की खेती की ओर अग्रसर हो रहा है।
औषधि और व्यवसायिक दृष्टिकोण से अच्छी है पपीते की खेती
उन्होंने बताया कि पपीते की पंत पपीता पूसा डिलीशियस, पूसा मजेटी, पूसा नन्ना वाशिंगटन, कोयंबटूर 2, कोयंबटूर 1, सूर्या, कोयंबटूर 4, रेड लेडी, अहम प्रजातियां हैं। पपीते की खेती के लिए न्यूनतम 40 डिग्री फॉरेनहाइट एवं अधिकतम 01 से 10 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान की आवश्यकता होती है। अच्छी उपज के लिए 90 से 100 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान उपयुक्त माना जाता है। इसकी फसल को पानी वाला बल्लू तीनों प्रभावित करते हैं। जीवांश युक्त मृदा में पपीते की खेती अच्छी रहती है। जहां पर जलभराव अधिक होता है, वहां पर इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।