इस बार का हरियाणा का विधानसभा चिनाव बेहद खास रहा क्योंकि कांग्रेस जीतती हुई बाजी हार गई जिसकी वजह से अब सियीसी गलियारों में कांग्रेस की हार के ही चर्चे हो रहे है. ऐसे में तमाम नेताओं के बयान भी सुनने को मिल रहे है फिर चाहें वो पक्ष के हो या फिर विपक्ष के. इसी कम्र में अब भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी (Gurnam Singh Charuni) ने भी हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर हुड्डा (Bhupinder Hooda) पर जोरदार निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि भूपिंदर हुड्डा काफी मूर्ख हैं. और कांग्रेस की हार के लिए उनकी नेतृत्व रणनीति को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में उनकी भूमिका थी, लेकिन पार्टी ने कोई ठोस समझौता नहीं किया और सब कुछ चढ़ूनी जैसे नेताओं पर छोड़ दिया। मैं अब भी कांग्रेस आलाकमान को बताना चाहता हूं कि उन्हें भूपेन्द्र हुड्डा को विपक्ष का नेता नहीं बनाना चाहिए.
“कुछ सरकार के साथ, कुछ सरकार के खिलाफ”
तो वहीं अब गुरनाम सिंह चढूनी के बयान पर किसान नेता राकेश टिकैत ने रविवार 13 अक्टूबर को अपना बयान दिया है. राकेश टिकैत ने हरियाणा में कांग्रेस की हार पर बात करते हुए कहा कि, “ऐसा नहीं है कि किसान किसी दूसरी पार्टी के साथ नहीं गए हैं. कुछ किसान सरकार के खिलाफ खड़े हुए और अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी किसान हैं जो सरकार के साथ सहयोग करते रहे।
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“ईवीएम भाजपा की मौसी है”
इसी के आगे राकेश टिकैत ने ईवीएम के सवाल पर भी बयान देते हुए बीजेपी पर हमला किया और कहा कि कि मैं साफतौर पर कहूंगा कि उन्होंने कहा कि चुनावों में गड़बड़ी हो रही है और ईवीएम के चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप के संकेत दिए। टिकैत ने यह भी आरोप लगाया कि ईवीएम को बूथ तक पहुंचने से पहले किसी पार्टी को नहीं दिखाया जाता और इसे पहले से प्रोग्राम किया जाता है। सब खेल ईवीएम का है. ईवीएम भाजपा की मौसी है.
गुरनाम सिंह चढूनी कांग्रेस प्रत्याशी से हारे
बता दें कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस सीट से कांग्रेस के मनदीप चट्ठा ने जीत हासिल की थी. तो वहीं गुरनाम सिंह चढूनी की पिहोवा सीट से जमानत जब्त हो गई क्योंकि चढूनी को इस सीट पर सिर्फ 1170 वोट मिले. आपको बता दें कि किसान आंदोलन के समय गुरनाम सिंह चढूनी मुख्य भूमिका में थे और अपने साथ लाखों किसानों का समर्थन होने की बात भी करते थे. मगर जिस सीट से लड़े वहां ज्यादातर किसान वोटर थे लेकिन इसके बावजूद भी वो चुनाव में हार गए.