दिल्ली की एक अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के आरोपी नाबालिग को आजीवन कारावास की सजा सुनाया है। किसी भई जुर्म के लिए नाबालिग को इतनी कठोर सजा मिलना काफी दुर्लभ है, क्योंकि अक्सर बचाव पक्ष का तर्क होता है कि नाबालिग की उम्र के कारण उसे कठोर दंड से छूट मिलनी चाहिए। इस मामले में किशोर न्याय बोर्ड ने निर्धारित किया कि अपराध के समय 16 साल से थोड़ा अधिक उम्र के आरोपी के साथ वयस्क की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए। नतीजतन, मामले को POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया।
बाल सुधार केंद्र में भी नहीं सुधरा युवक
POCSO मामले को संभाल रहे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमित सहरावत ने 3 अगस्त को फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी ने न केवल लड़की के साथ बलात्कार किया, बल्कि सके सिर पर बार-बार पत्थर से वार करके उसकी हत्या भी की। न्यायाधीश ने अपराध को लड़के की अत्यधिक क्रूरता और आपराधिक मानसिकता का स्पष्ट संकेतक बताया, जो अपराध की गंभीरता को रेखांकित करता है। अदालत ने पाया कि आरोपी को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है। उसके निजी जीवन और भविष्य के बारे में चर्चा के दौरान, यह स्पष्ट हो गया कि उसकी मानसिकता बहुत नकारात्मक थी। अदालत ने कहा कि उसके पश्चाताप की कमी और लगातार आपराधिक व्यवहार से संकेत मिलता है कि वह सुधर नहीं पाया है। अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अगर उसे सुधारा नहीं गया, तो वह आगे भी अपराध कर सकता है।
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फरवरी 2017 में हुई थी गिरफ़्तारी
आरोपी का आपराधिक व्यवहार का इतिहास रहा है, जिसमें 2023 में उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम के तहत एक एफआईआर भी शामिल है। उस समय, वह एक वयस्क था, और दिल्ली की अदालत बलात्कार और हत्या के मामले में फैसला सुनाते समय इस मामले से अनजान थी। आरोपी को फरवरी 2017 में गिरफ्तार किया गया था और उसे संस्थागत देखभाल के लिए भेजा गया था, जहाँ वह अप्रैल 2020 तक रहा। रिहा होने के बाद उसने यह अपराध किया।
पीड़ित बच्ची के परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा
अदालत ने आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी पाया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। वर्तमान में, वह लगभग 24 वर्ष का है और उसने केवल चौथी कक्षा तक की शिक्षा पूरी की है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि उसकी शिक्षा की कमी और पुनर्वास की आवश्यकता के कारण उसे कारावास में रखना आवश्यक है, ताकि यह सुनिशचित हो सके कि वह समाज के लिए खतरा न बने। अदालत ने जिला बाल संरक्षण इकाई को निर्देश दिया कि वह हर साल उसकी प्रगति का आकलन करे और अदालत को रिपोर्ट करे। अदालत ने पीड़ित परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया, जिसमें लड़की के माता-पिता द्वारा झेली गई अत्यधिक मानसिक पीड़ा को स्वीकार किया गया। अदालत ने कहा कि पांच साल की बच्ची के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या किसी भी माता-पिता के लिए असहनीय पीड़ा है।