Caste Census: केंद्र सरकार के जातीय जनगणना को लेकर लिए गए ऐतिहासिक फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की नेता और बारामती से सांसद सुप्रिया सुले का बयान सामने आया है। उन्होंने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे इंडिया गठबंधन की जीत बताया और कहा कि यह फैसला विपक्ष की लगातार की गई मांगों और आंदोलनों का ही परिणाम है।
सुप्रिया सुले ने कहा जातीय जनगणना की मांग हमने न सिर्फ संसद में, बल्कि सड़कों पर उतरकर भी कई बार उठाई थी। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अमोल कोल्हे और मैं खुद इस आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। यह फैसला हमारे संघर्ष की जीत है। देर आए, दुरुस्त आए।
जातीय जनगणना पर राजनीतिक क्रेडिट की दौड़
बता दें कि बुधवार, 30 अप्रैल को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में जातीय जनगणना को जनगणना प्रक्रिया में शामिल करने का फैसला लिया गया। इस ऐलान के बाद से राजनीतिक दलों के बीच क्रेडिट लेने की होड़ मच गई है।
विपक्षी दल जहां इसे जनता के अधिकारों की जीत और अपने आंदोलन का नतीजा बता रहे हैं, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा का कहना है कि विपक्ष ने इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन जब उनके पास सत्ता थी, तब उन्होंने इसे लागू नहीं किया।
बिहार चुनाव से जोड़कर देखी जा रही है कवायद
विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले का संबंध बिहार में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से भी है। बिहार में आरजेडी इसे अपनी वैचारिक जीत बता रही है, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का कहना है कि यह उनकी वर्षों पुरानी मांग का नतीजा है।
‘संख्या भारी, जिम्मेदारी भी भारी’- विपक्षी नेता
इससे पहले शरद पवार गुट के नेता जितेंद्र आव्हाड ने भी केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा था, आखिरकार सरकार को झुकना ही पड़ा। विपक्ष के दबाव ने काम किया। अब ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी जिम्मेदारी’ के सिद्धांत पर अमल का समय है।
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