वाराणसी: दिल्ली से भाजपा सांसद और भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता गायक मनोज तिवारी ने गुरूवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा। राहुल गांधी की जम्मू और वैष्णो देवी की दर्शन यात्रा पर चुटकी लेते हुए मनोज तिवारी ने कहा कि सद्बुद्धि तो आई । देश में जब भी चुनाव होता है तो इनके जैसे लोग मंदिर जाते है और माला भी पहनते है।
वाराणसी आये मनोज तिवारी मीडिया से बातचीत कर रहे थे। तिवारी ने कहा कि बहन जी ( बसपा सुप्रीमो मायावती) को देखा त्रिशूल लेते,राहुल जी को दर्शन करते अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आगे कुछ और कर लेते हैं तो देखिए ये लोग क्या-क्या करते हैं। मनोज तिवारी ने कहा कि अभी संसद का सत्र चल रहा था और ओबीसी के पक्ष में इतना बड़ा निर्णय हो रहा था तब राहुल गांधी वहां नहीं दिखे। संसद में हम उनको बहुत खोज रहे थे।
ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रदेश में चुनाव लड़ने के सवाल पर मनोज तिवारी ने कहा कि असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग चुनावी प्राणी हैं। इनका काम लोगों को धर्मों में बांटना है। विकास उनका एजेंडा नहीं है। भाजपा ही सबका साथ सबका विकास की बात करती है और इसी विश्वास पर कार्य करती है। ओवैसी ने असम और पश्चिम बंगाल में भी खूब दौरा किए थे। ऐसे ही उत्तर प्रदेश का भी दौरा कर रहे हैं। चुनाव बाद देखिएगा, उनके हाथ क्या लगता है।
आरक्षण से जुड़े सवाल पर सांसद ने कहा कि देश में पहली बार पिछड़ों और दलितों के साथ सवर्णों को भी आरक्षण मिल रहा है। ऐसी सोच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थी। उन्होंने सवर्ण गरीबों के बारे में भी सोचा और मुस्लिम समाज के लोगों को भी आरक्षण दिया। देश में लगातार बढ़ रही महंगाई से जुड़े सवाल पर मनोज तिवारी ने कहा कि कोरोना की एक वैक्सीन की डोज केन्द्र सरकार को 550 रुपये की पड़ रही है। अगर इस तरह से देखे तो करोड़ों लोगों को वैक्सीन लगाया जा चुका है और सरकार ने किसी से एक भी रुपये इसके लिए नहीं लिया। इस कारण डीजल-पेट्रोल की कीमत पर थोड़ा असर होता दिख रहा है।
इस समय सरकार का सबसे बड़ा उद्देश्य है सभी को वैक्सीन लग जाये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महंगाई से भी जल्द निजात दिलाएंगे। राजभाषा हिन्दी के उत्थान के लिए बड़ा लालपुर स्थित पं.दीन दयाल हस्तकला संकुल पहुंचे मनोज तिवारी ने हिन्दी भाषा में कार्य करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यालयों में अब तक उर्दू और अंग्रेजी भाषा के मुकाबले हिंदी का प्रयोग कम होता रहा है। ऐसे में इसे बढ़ावा देने की जरूरत है।