Kailash Mansarovar Yatra 2025: लंबे इंतजार के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर 30 जून 2025 से शुरू हो गई है। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी मानी जाती है। कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा विवाद के कारण यह यात्रा वर्ष 2020 से स्थगित थी। अब जब यह पवित्र यात्रा दोबारा शुरू हुई है, तो देशभर के श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है। पहला जत्था 36 यात्रियों का रवाना हो चुका है, जो इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बना।
कहां स्थित है कैलाश मानसरोवर और कैसे पहुंचा जा सकता है?
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील तिब्बत के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में स्थित हैं, जो समुद्र तल से लगभग 6,638 मीटर की ऊंचाई पर है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास और मानसरोवर झील को मोक्ष का द्वार माना जाता है। भारत से कैलाश मानसरोवर की यात्रा दो प्रमुख मार्गों से की जा सकती है—
- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड): यह पारंपरिक और प्राचीन मार्ग है जो धारचूला, पिथौरागढ़ होते हुए आगे बढ़ता है।
- नाथू ला दर्रा (सिक्किम): यह अपेक्षाकृत नया और सुविधाजनक मार्ग है, जो सड़क मार्ग से अधिक सुलभ है।
यात्रा के लिए पासपोर्ट अनिवार्य है क्योंकि यह विदेशी क्षेत्र (चीन के तिब्बत) से होकर गुजरता है। इसके अलावा स्वास्थ्य प्रमाणपत्र, चीन का वीज़ा, विदेश मंत्रालय की मंजूरी, और पूरी यात्रा के लिए पंजीकरण जरूरी होता है। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) इस यात्रा का संचालन करते हैं।
सुरक्षा और चिकित्सा सुविधाएं और मजबूत
सरकार ने इस बार की यात्रा को अधिक सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने के लिए विशेष इंतजाम किए हैं।
- हर दल के साथ चिकित्सकीय दलों को भेजा जा रहा है।
- दुर्गम क्षेत्रों में ऑक्सीजन सिलेंडर, हाई एल्टीट्यूड मेडिकल किट और आपातकालीन सेवा मौजूद रहेंगी।
- आपदा प्रबंधन टीमों को भी यात्रा मार्ग पर तैनात किया गया है।
इन व्यवस्थाओं का उद्देश्य है कि श्रद्धालु शांति और श्रद्धा के साथ अपनी यात्रा पूरी कर सकें।
श्रद्धालुओं के लिए आत्मिक शांति और पुण्य का अवसर
कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव के निवास स्थल तक पहुंचने का मार्ग है। मानसरोवर झील को पवित्र नदियों की जननी और मोक्षदायिनी माना जाता है। यह यात्रा केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि बौद्ध, जैन और तिब्बती धर्मों के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत पवित्र मानी जाती है। तीन साल बाद यात्रा फिर शुरू होने से लाखों लोगों की आस्था को नया जीवन मिला है।
धार्मिक आस्था से जुड़ा प्रतीकात्मक महत्व
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का दिव्य धाम माना जाता है, जबकि मानसरोवर झील आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है। माना जाता है कि यहां यात्रा करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है। इस यात्रा में कठिनाइयाँ होती हैं, लेकिन यही यात्रा को और भी पुण्यदायक बनाती है।
आध्यात्मिकता और साहस का संगम
कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 का दोबारा प्रारंभ केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण है। सरकार द्वारा किए गए इंतज़ामों से यह यात्रा अब पहले से कहीं अधिक सुरक्षित और सुलभ हो गई है। श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे पूरी तैयारी, आवश्यक दस्तावेज़ों और शारीरिक क्षमता के साथ इस यात्रा का हिस्सा बनें, ताकि यह अनुभव जीवन का सबसे यादगार अध्याय बन सके।
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