देश का राजनीतिक पारा एक बार फिर से अपने चरम पर पहुंच गया है। पहुंचे भी क्यों न जब बात अगड़े और पिछड़े की सियासत के बहाने राजनीनिक रोटियों को तेज आंच में जो सेकना है। आज के बदलते राजनीतिक दस्तूर में ये तो आम सी बात है।
मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) वैसे तो भारतीय राजनीति का बहुत बड़ा नाम है यही कारण है कि अगर वो शब्दों से एक भी सियासी तीर छोड़ते हैं तो उसका असर सियासी गलियारी में वायरल न्यूज की तरह फैल जाता है। आइए आपको बताते हैं कि मोहन भागवत ने आखिर ऐसा क्या दे डाला जिससे पूरे देश में सियासी भूचाल सा आ गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जाति व्यवस्था पर अपना पक्ष रखते साफ लहजे में कहा कि जाति भगवान ने नहीं बनाई है बल्कि जाति पंडितों ने बनाई एक खेल है। भगवान की धरना हमेशा यही रही है कि मेरे लिए हर इंसान एक है। उनमें कोई जाति या वर्ण नहीं है। लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई जो कि गलत था। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश में विवेक, चेतना सभी एक है। उसमें कोई अंतर नहीं, बस मत अलग अलग है। जाति में बंटे रहने के कारण हमारे समाज के बंटवारे का ही फायदा दूसरों ने उठाया है।
अगर राजनीतिक और जातिगत चशमें को उतारकर देंखें तो मोहन भागवत कहीं न कहीं सही बात कह रहे हैं लेकिन सवाल येही है कि उन्होंने आखिर पंडितों को ही क्यों निशाना बनाया इस बयान को दो मायने निकाले जा रहे हैं। एक पक्ष और एक विपक्ष अब सवाल ये उठ रहा कहीं इस बयान से भाजपा का कोर वोटर कहा जाने वाला ब्रहामण समाज कहीं भाजपा की वोट बैंक की राजनीति में कहीं गहरी सेंध न लगा दे। हालांकि कि उसके तुरंत बाद ही RSS ने सफाई देते हुए कहा था कि इस बयान में पंडितों को विद्ववान कहा गया है। हालांकि सियासी रायता तो काफी फैल गया है इसे कैसे समेटा जाएगा ये तो आने वाला समय बताएगा।

