सपा पार्टी में इस समय बौखाल मचा हुआ है। रामचरितमानस पर शुरू हुई महाभारत बिहार से शुरू हुई और उत्तर प्रदेश तक इसकी आग फैल चुकी है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसकी चिंगारी को आगे बढ़ाया तो सपा ने इसे लपक कर रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को दलित और पिछड़ा विरोधी बताते हुए स्वामी प्रसाद लगातार मोर्चा खोले हुए हैं। अब अखिलेश यादव ने भी इस पर धारदार पॉलिटिक्स शुरू कर दी है स्वामी प्रसाद के बयान का विरोध करने वाली सपा नेता ऋचा सिंह और रोली तिवारी को गुरुवार को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
स्वामी प्रसाद मोर्य ने रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को हटाने की मांग कर रहें हैं, जिसके लिए उन्होनें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम मोदी को पत्र लिखते हुए कहा है कि रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह ने लगातार स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान को लेकर विरोध में मोर्चा खोल रखा था और सोशल मीडिया में हर रोज लिख रही थीं। ऋचा और रोली का स्वामी प्रसाद मौर्य पर इस तरह मोर्चा खोलना सपा को नागवारा हो रहा जिसके चलते अखिलेश यादव ने दोनों को पार्टी से बाहर निकाल दिया।
इस मामले पर उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा है कि अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ खुलकर खड़े हो गए हैं और उन्होनें ये संदेश दिया है कि अगर पार्टी में कोई भी स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ जाता है तो उसके साथ भी सख्त कार्रवाई होगी। स्वामी प्रसाद मौर्य ने संदेश देते हुए कहा है कि वो अपनी इस मुहिम में पूरा दमखम लगा देंगे और अगर पार्टी ने मेरे इस मुहिम में टांग अड़ाने कि मतलब खिलाफ होने की कोशिश की तो अंजाम आप जानते ही हैं कि आपको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
सपा स्वामी प्रसाद के इस अभियान के चलते दो भागों में बंट गई है। सपा के कई विधायकों और नेताओं ने खुलेआम वार करते हुए युद्ध सा छेड़ दिया है। अब इसको लेकर ये कह जा रहा है कि सपा 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक मुद्दे गढ़ रही है। अब आप तो जानते ही हैं कि भारत में चुनाव आने से पहले सभा पार्टियां सत्ता में आने के प्रयास में ऐसे ऐसे मुद्दे छेड़ देती हैं कि देश में माहौल ऐसा बन जाता है जैसे विश्व युद्ध होने वाला हो।
सभी पार्टियां जीतने की फिराक के चक्कर में सारी लिमिट को क्रॉस कर जाती हैं, जोर सभी पार्टियां लगाती है सत्ता में आने के लिए लेकिन ये बात तो आप जानते हैं कि जीतता कोई एक है और पब्लिक के हाथ में ही सारा फैसला होता है कि वो किसको जीताकर कुर्सी पर बैठकर राजनीति का ताज पहनाना चाहती है और किसको नहीं।

