भदोही: पूर्वांचल की कांग्रेसी राजनीति में वाराणसी के ‘औरंगाबाद हाउस’ और भदोही के ‘काशी सदन’ की कभी अपनी अहमियत थी। क्योंकि दोनों कांग्रेस के दिग्गज राजनेता पंड़ित कमलापति त्रिपाठी और पंड़ित श्यामधर मिश्र से नहीं सियासी घरानों से ताल्लुक रखते थे। पूर्वांचल के विकास में दोनों राजनेताओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन समय के बदलाव और कांग्रेस के बिखराव की वजह से सबकुछ बदल गया। ‘काशी सदन’ की बहू डा.नीलम मिश्र को अंतत: पार्टी में शीर्ष नेतृत्व कि उपेक्षा की वजह से समाजवादी पार्टी का दामन थामना पड़ा। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। भदोही की राजनीति में कांग्रेस के लिए यह बड़ा नुकसान है।
डा. नीलम मिश्रा ने मीडिया से विशेष बातचीत में आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस में जमीनी कार्यकर्ताओं की कोई पूछ नहीं है। सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका से मिलने के लिए बिचौलियों को माध्यम बनाना पड़ता है। लंबे प्रयास के बाद भी शीर्ष नेताओं से मुलाकात नहीं हो पाती। संगठन में कुछ लोग हैं जो गांधी परिवार को घेर रखा है। वहां आम कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जाती है। कांग्रेस छोड़ने की मुख्य वजहों में उन्होंने यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी की गलत नीतियों को भी जिम्मेदार ठहराया है।
डा. मिश्र ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल के बाहुबली रमाकांत यादव को भदोही लोकसभा से कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी दाल जब भाजपा में नहीं गली तो कांग्रेस ने उम्मीदवार बना दिया। उन्होंने दावा किया कि हमने प्रियंका गांधी से इसका मुखर विरोध किया। हमने कहा कि जनता किसी बाहरी उम्मीदवार को नहीं चाहती है। क्योंकि सभी प्रमुख पार्टियां बाहरी उम्मीदवार थोपना चाहती हैं। जबकि भदोही की जनता क्षेत्रीय उम्मीदवार को चाहती है। इसलिए कांग्रेस के भविष्य को देखते हुए बाहरी उम्मीदवार न थोपा जाए। क्योंकि रमाकांत यादव कांग्रेस की संस्कृति से नहीं आते और बाहरी हैं।
भदोही में वह अगड़े-पिछड़े की राजनीति कर रहे हैं और ब्राह्मणों का अपमान कर रहे हैं। संगठन को एक साथ लेकर उन्होंने चुनाव लड़ने का कोई प्रयास नहीं किया।
डा. मिश्र ने आरोप लगाते हुए कहा कि मेरी इसी बात से प्रियंका वाड्रा चिढ़ गई और मुझे खूब खरी-खोटी सुनाई। जिसकी वजह से विवश होकर हमने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। जबकि मेरा पूरा परिवार कांग्रेस के लिए समर्पित रहा है। हमारे त्यागपत्र को पार्टी ने अभी तक न स्वीकारा ना कोई जवाब दिया। जिसकी वजह से मुझे समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करनी पड़ी।
एक सवाल के जवाब में डा.नीलम ने कहा कि भाजपा से हमारी व्यक्तिगत नीतियां मेल नहीं खाती, इसलिए हमने भाजपा में न जाने का फैसला किया। आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा आज देश की सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन देश के दूसरे बड़े राजनेताओं को घेरने का उसका तरीका सही नहीं है। धर्म की आड़ में राजनीति करना मुझे अच्छा नहीं लगता। जबकि भाजपा का यही मूल एजेंडा है। बसपा भी हमारी नीतियों से मेल नहीं खाती।
समाजवादी नेत्री ने बताया कि दो साल पूर्व मेरी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकत हुई थी। उन्होंने मुझे बेहद सम्मान दिया था। उनकी सोच और समाजवादी नीतियों से मैं बेहद प्रभावित हुई। दो साल पूर्व ही हम सपा से जुड़ जाती लेकिन कोरोना कि वजह से यह सम्भव नहीं हुआ। शिक्षक दिवस पर अखिलेश यादव का आगमन भदोही में हुआ तो हमने समाजवादी की सदस्यता ग्रहण कर लिया।