मथुरा: पूरा विश्व योगीराज श्रीकृष्ण का 5248वां जन्मोत्सव मनाने के लिए चहुंओर बेताब है तो वहीं श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली वृंदावन में पिछले दो महीने से लगातार मुस्लिम परिवार दिन रात एक करके पचरंगी पोशाकों को तैयार किये हैं। बाहर से आने वाले श्रद्धालु इस बेजोड़ कारीगरी को देखकर इसके मुरीद बन गए हैं।
गौरतलब है कि भारत वर्ष में वृंदावन मथुरा से ठाकुरजी की पोशाकें डिमांड पर जाती है, वहीं विदेश से भी ऑर्डर मिलने के बाद कोरियर या अन्य संसाधनों से इन्हें भेजा जाता है। जब मुस्लिम कारीगर से पूछा गया तो उनका कहना था कि हमारे ठाकुरजी का काम दिल लगाकर और खुशी से किया जाता है।
कृष्ण-जन्माष्टमी के दिन देश-विदेश के सभी कृष्ण मंदिरों और घरों में भक्तों द्वारा भगवान कृष्ण को नई-नई पोशाकें धारण कराई जाएंगी। जन्माष्टमी के मौके पर पहनाई जाने वाली इस विशेष पोशाक के महत्व को समझते हुए कृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन में पोशाक बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है। वृन्दावन में कृष्ण की पोशाक बनाने का ये काम हिन्दू-मुस्लिम सदभाव की एक बेजोड़ मिसाल है, क्योंकि यहां पोशाक बनाने वाले ज्यादातर कारीगर मुस्लिम हैं। कोरोना काल के चलते काम ठप्प हो गया था, लेकिन दो महीने से ठाकुर के जन्मोत्सव ने कारोबार को बढ़ाया है। यहां 100 रूपए से लेकर हजारों, लाखों रूपए तक की पोशाकें तैयार होती हैं।
कान्हा का जन्मदिन दो दिन बाद है और उनकी पोशाकों को बनाने का काम भी चरम पर चल रहा है। पोशाकों को बनाने का काम जहां हिन्दू करते हैं, वहीं 80 प्रतिशत मुस्लिम कारीगर बेजोड़ कारीगरी करके इन पोशाकों को तैयार करते हैं। इनके बेजोड़ कारीगरी से यहां के श्रद्धालु भी मुरीद बन गये हैं। इस बार ठाकुर जी मोतियों और स्टोन से बनी पचरंगी पोशाकों में अपनी अलग ही छठा बिखेरती है।
व्यापारी अशोक लाडीबाल का कहना है कि इस बार नयी-नयी डिजाईनों की बड़ी सुन्दर-सुन्दर पोशाकें तैयार की गई, कई माह पूर्व से पोशाक बनाने का काम अब चरम पर है। इन पोशाक को बनाने वाले कारीगर हाथ से पूरी कारीगरी करके इन पोशाकों को तैयार करते हैं। कान्हा की लीला स्थली में जहां हिन्दू कारीगर इस काम को करते हैं वही धर्मं की बंदिशों को तोड़ते हुए वृन्दावन के ज्यादातर मुस्लिम कारीगर पोशाक बनाने का काम करते हैं और सभी हिन्दू धर्म की आस्था का ख्याल रखते हुए इस काम को अंजाम देते हैं।
मेरे परिवार को पालते हैं ठाकुरजी : नबी अब्बासी
कारीगर नबी अब्बासी ने बताया कि 40 सालों से मैं ठाकुरजी की पोशाक तैयार करता हूं, मेरे परिवार को ठाकुरजी ने पाला है, उनकी पोशाक तैयार करने में अलग ही खुशी महसूस होती है, पोशाक का कार्य दो महीने से तेजी से चलता है क्योंकि राधाजन्माष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर पोशाकें तैयार की गई है, उनके हाथ की बनी पोशाक राधाबल्लभ एवं बांकेबिहारी महाराज को पहनाई जाती है, इसके अलावा अन्य मंदिरों में भी डिमांड के अनुसार पोशाकें तैयार की जाती है।
व्यापारी ने बताया कि 12 महीने काम चलता है, अब जन्माष्टमी, राधाष्टमी, दीपावली, होली गोवर्धन गौड़ पूर्णिमा रामनवमी चैन चलती रहती है। जन्माष्टमी को लेकर पोशाकें देश विदेश सभी जगह जाती हैं, बिरला ग्रुप का काम भी यहां तैयार किया जाता है। पार्टी का जैसा बजट होता है, जन्माष्टमी पर वैसी ही पोशाक तैयार की जाती है। कोरोना के चलते 20 प्रतिशत काम भी नहीं रहा। पिछले कई वर्ष पूर्व यह काम जोरों पर चलता था। लेकिन कोरोना काल में पिछले साल काम को ठप्प ही कर दिया था। दो महीने से थोड़ा बहुत काम चल रहा है।