Supreme Court: देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के द्वारा रिटायरमेंट के आठ महीने बाद भी आधिकारिक बंगले में रहना अब विवाद का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि 5, कृष्णा मेनन मार्ग स्थित सरकारी बंगला तत्काल खाली करवाया जाए। यह बंगला वर्तमान मुख्य न्यायाधीश का आधिकारिक निवास है।
नियमों का उल्लंघन
नियमों के अनुसार, रिटायरमेंट के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अधिकतम छह महीने तक टाइप-7 बंगले में रहने की अनुमति होती है। लेकिन डीवाई चंद्रचूड़ पिछले आठ महीनों से टाइप-8 बंगले में रह रहे हैं, जो कि सीजेआई के लिए आरक्षित होता है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने 1 जुलाई को केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि यह स्थिति अब नियमों का उल्लंघन बन चुकी है और इसे तत्काल सुधारा जाना चाहिए।
पारिवारिक मजबूरियों का दिया हवाला
पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा कि उनकी देरी पारिवारिक कारणों की वजह से हुई है। उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है और उनके लिए उपयुक्त घर ढूंढना आसान नहीं था। उन्होंने आगे बताया कि सरकार ने उन्हें किराए पर जो नया घर दिया है, उसमें मरम्मत का कार्य चल रहा है और जैसे ही वह पूरा होगा, वे स्थानांतरित हो जाएंगे।
दो मुख्य न्यायाधीशों ने नहीं लिया बंगला
गौर करने वाली बात यह है कि चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस बंगले को लेने से इनकार कर दिया था। दोनों ने अपने पुराने सरकारी आवास में ही रहना पसंद किया। इस वजह से चंद्रचूड़ को अतिरिक्त समय तक बंगले में रहने की अनुमति आसानी से मिल गई।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले दी थी मोहलत
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन की ओर से पहले ही अप्रैल 2025 तक के लिए चंद्रचूड़ को बंगले में रहने की अनुमति दी गई थी। बाद में मई 2025 तक मौखिक रूप से मोहलत भी दी गई। लेकिन अब वह समय भी बीत चुका है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अब और इंतजार नहीं किया जा सकता, क्योंकि कई अन्य न्यायाधीशों को आवास की आवश्यकता है।
“मुझे जिम्मेदारी का एहसास है” – चंद्रचूड़
पूर्व सीजेआई ने कहा, “मुझे अपनी जिम्मेदारियों का पूरा एहसास है। मैं बहुत जल्द बंगला खाली कर दूंगा। इससे पहले भी कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को परिस्थितियों के अनुसार अतिरिक्त समय दिया गया है। मैंने यह मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट प्रशासन के साथ साझा किया था।”
सुप्रीम कोर्ट की साख पर उठे सवाल
यह मामला इसलिए भी सुर्खियों में है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब अदालत को अपने ही पूर्व प्रमुख के खिलाफ केंद्र सरकार को लिखित अनुरोध करना पड़ा है। सामान्यतः इस तरह के मामलों का निपटारा आपसी संवाद से किया जाता है, लेकिन इस बार अदालत को कड़ा रुख अपनाना पड़ा है।
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