Delhi: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा नियमों को लेकर देशभर में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस मुद्दे पर विरोध जताने के लिए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और डीएमके के विभिन्न सांसदों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान अखिलेश यादव ने डीएमके की छात्र शाखा को आश्वासन दिया कि वह इस लड़ाई में उनके साथ खड़े रहेंगे।
जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन
डीएमके की छात्र शाखा ने मंगलवार सुबह 10 बजे राष्ट्रीय राजधानी के जंतर-मंतर पर यूजीसी मसौदा नियमों के खिलाफ प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में इंडिया ब्लॉक में शामिल विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हुए। इससे पहले, तमिलनाडु विधानसभा ने 9 जनवरी को यूजीसी के इन नए नियमों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था और केंद्र सरकार से इसे वापस लेने का आग्रह किया था।
यूजीसी के किस ड्राफ्ट पर हो रहा है विवाद?
यूजीसी ने 6 जनवरी को विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में वाइस चांसलर, शिक्षकों और अकादमिक स्टाफ की भर्ती को लेकर एक नया ड्राफ्ट रेगुलेशन जारी किया था। इस नए नियम के तहत राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में चांसलर को अधिक शक्तियां दी गई हैं। यह निर्णय संघवाद और राज्यों के अधिकारों पर सवाल खड़ा कर रहा है क्योंकि चांसलर अक्सर राज्यपाल होते हैं, जो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि माने जाते हैं। इसी कारण विपक्षी दल इस ड्राफ्ट के विरोध में हैं।
यूजीसी ड्राफ्ट 2025 की मुख्य बातें
- नेट/सेट परीक्षा पास करने के बाद उम्मीदवार अपनी डिग्री से अलग विषयों में भी पढ़ा सकते हैं, हालांकि पीएचडी में किए गए विशेषज्ञता को प्राथमिकता दी जाएगी।
- शैक्षणिक पब्लिकेशन और पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
- शिक्षकों की भर्ती में केवल स्कोर पर निर्भर न रहकर उनकी योग्यता और योगदान पर ध्यान दिया जाएगा।
- दिव्यांगजनों और खिलाड़ियों को शिक्षण क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- कला, खेल और पारंपरिक विषयों के विशेषज्ञों को अकादमिक क्षेत्र में अवसर दिया जाएगा।
- शिक्षकों के प्रमोशन के लिए मानदंडों को सरल बनाया गया है।
- कुलपतियों की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के साथ पात्रता मानदंड का विस्तार किया गया है।
कर्नाटक और तमिलनाडु के शिक्षा मंत्रियों की प्रतिक्रिया
कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री एम.सी. सुधाकर ने कहा कि यूजीसी को नियम बनाने से पहले सभी राज्यों से सलाह-मशविरा करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि कई राज्यों, जिनमें भाजपा सहयोगी भी शामिल हैं, ने यूजीसी के ड्राफ्ट में कई कमियों को उजागर किया है। उन्होंने यह भी कहा कि उपकुलपति पद के लिए 24 वर्षों की सेवा अनिवार्य होनी चाहिए, लेकिन नए ड्राफ्ट में इसे घटाकर 10 वर्ष कर दिया गया है, जो कि सही नहीं है।
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तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री चेज़ियान ने कहा कि यह नियम छात्रों को अपनी मर्जी से शिक्षा छोड़ने की अनुमति दे रहे हैं, जिससे शिक्षा के मूल उद्देश्य का हनन हो रहा है। उन्होंने कहा, “शिक्षा कोई बाजार नहीं है, जहां आप अपनी मर्जी से आ सकते हैं और जा सकते हैं।”
विपक्षी दलों की एकजुटता
कर्नाटक के मंत्री एम.सी. सुधाकर द्वारा आयोजित राज्य उच्च शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और झारखंड के मंत्रियों ने यूजीसी के नए नियमों पर आपत्ति जताई। इन राज्यों ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि राज्य सरकारों को अपने विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में केंद्रीय भूमिका निभाने का अधिकार मिलना चाहिए। विपक्षी नेताओं ने इस ड्राफ्ट को संघीय ढांचे के खिलाफ बताते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।