Same Sex Marriage: देश के सर्वोच्च न्यायलय में आज मंगलवार (17 अक्टूबर) को समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की अपील करने वाली याचिकाओं पर फैसला दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय जजों की बेंच ने इस मामले पर फैसला पढ़ा। बेंच के अन्य सदस्यों में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा शामिल हैं।
विवाह मौलिक अधिकार नहीं
बता दें कि इस मामले पर चार अलग-अलग राय सामने आई हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक (Same Sex )जोड़ों के लिए विवाह को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अदालतें कानून नहीं बनाती बल्कि उनकी व्याख्या करती हैं और उन्हें लागू करती हैं। विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन का प्रश्न संसद के अधिकार क्षेत्र में है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में चार अलग-अलग फैसले हैं। एक मेरी तरफ से है, एक जस्टिस कौल की तरफ से, एक जस्टिस भट्टाचार्य की तरफ से और एक जस्टिस नरसिम्हा की तरफ से। कुछ निर्णय पर सहमति हैं, और कुछ निर्णय पर असहमति है।
2018 में, धारा 377 का एक हिस्सा ख़त्म कर दिया गया था
समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत इसके पंजीकरण का अनुरोध किया था। केंद्र सरकार ने इसे भारतीय सामाजिक मर्यादाओं के विरुद्ध मानते हुए इसका विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की दलील है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था।
समलैंगिकता शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं है: सुप्रीम कोर्ट
सीजेआई ने कहा कि समलैंगिकता शहरी अभिजात वर्ग तक सीमित नहीं है। यह उन लोगों तक ही सीमित नहीं है जो अंग्रेजी बोलते हैं और अच्छी नौकरियां रखते हैं, बल्कि इसका विस्तार गांवों में खेती करने वाली महिलाओं तक भी हो सकता है। यह मानना कि ऐसे व्यक्ति केवल शहरी या कुलीन वर्ग में ही मौजूद हैं, गलत है। समलैंगिकता किसी की जाति, वर्ग या सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर नहीं करती है। यह कहना भी ग़लत है कि विवाह एक अपरिवर्तनीय संस्था है। विधायिका ने विभिन्न अधिनियमों के माध्यम से विवाह कानूनों में कई संशोधन किए हैं।
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20 याचिकाएं, 7 दिन की सुनवाई के बाद कमेटी गठित
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सात दिनों की सुनवाई के बाद, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार उठाए गए मुद्दों का समाधान तलाशने के लिए एक समिति बनाने के लिए तैयार है। मेहता ने कहा कि यह समिति इन जोड़ों के विवाह में हस्तक्षेप नहीं करेगी। याचिकाकर्ता, समान लिंग वाले जोड़े, आगे बढ़ने के तरीके पर अपने सुझाव दे सकते हैं। सरकार इसे लेकर सकारात्मक है. हालाँकि, इस मामले में विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय होना ज़रूरी है।
3-2 के अंतर से आया फैसला
देश की सर्वोच्च न्यायलय ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी तौर पर वैधता देने से साफ़ मना कर दिया है। सर्वोच्च न्यायलय की सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच ने 3-2 के बहुमत के नर्णय में कहा कि इस तरह की अनुमति सिर्फ कानून के जरिए ही दी जा सकती है। उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। गौरतलब है कि कोर्ट ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।


 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			 
			