– गोरखपुर में अयोजित रामायण कॉन्क्लेव पर विशेष
गोरखपु :- राज्य पर्यटन एवं सस्कृति विभाग की ओर से प्रदेश भर में आयोजित ‘रामायण कॉन्क्लेव’ के क्रम में 04 और 05 सितम्बर को योगीराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा। अलग-अलग विधा के कलाकार एवं दिग्गज इसमें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। रामायण पर आधारित कवि सम्मेलन से ‘जन-जन के राम ‘ परिलक्षित होंगे।
हमारे यहां सर्वकालिक मान्यता है कि भारत के ‘रोम-रोम’ में राम हैं। ‘लोक’ में राम’ हैं, हर सांस में राम’ हैं, मिट्टी, हवा, जल में भी राम हैं। इतना ही नहीं, राम भारत की सम्पदा, वैभव, यश, कीर्ति, मर्यादा और जीवन पद्धति हैं। साहित्य के माध्यम से वैश्विक क्षितिज पर छाने वाले ‘राम’ जन-जन की खुशियां हैं।
बाल्मीकि के राम से शुरू हुई गाथा की यात्रा अब वर्तमान समय तक आ पहुंची है। कभी तुलसी ने राम को स्थापित किया तो समय-समय पर नानक, गोरखनाथ, कबीर जैसे महाकवियों-कवियों ने भी इन्हें प्रतिष्ठित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी । जन-जन के मन-मस्तिष्क में रमने वाले राम की चर्चा करने वाले वेद, उपनिषद, स्मृति, इतिहास, पुराण भी राम के बिना अधूरे हैं। मनुष्य व श्रेष्ठ, संस्कारी जीवन की पहचान राम ही तो हैं।
वाल्मीकि की दृष्टि में राम
वाल्मीकि की दृष्टि में राम कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। भगवान् विष्णु का अवतार और परम ब्रह्म हैं श्रीराम। वाल्मीकि ने बड़ी ही सावधानी से इस बात को ब्रह्मा के मुंह से कहलवाया है। तभी तो वाल्मीकि ने युद्ध काण्ड के सर्ग 117 में कहा है कि ”भवान् नारायणो देव: श्रीमांश्रच्क्रायुध: प्रभु:, एकश्रृंगो वराहस्त्वं भूतभव्यसपत्नजित्।।१३।।
तुलसी के राम
डॉ शैलेंद्रदत्त शुक्ल कहते हैं कि तुलसी ने महर्षि वाल्मीकि के विचारों को प्रमाणित किया। तुलसी ने अपने राम का बखान ”रामहिं केवल राम पिआरा, जानि लेउ जो जान निहारा: के रूप में किया। यही एक वजह है कि लोक-कल्याणकारी कथा के रूप में राम चरित्र गाथा का बखान करने वाला रामचरित मानस रचनाकाल के तकरीबन 500 वर्षों बाद भी सतत लोकप्रिय और प्रवाहमान है। तुलसी के राम घट-घटवासी हैं। भवसागर से पार उतारने वाले हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। धर्म के मार्ग पर चलते हुए समाज के मार्गदर्शक भी हैं। अब इस ज्ञान को हमारी पीढ़ियों को प्रवाहित करते रहना होगा। राम को विष्णु अवतार न मानकर एक साधारण मानव मानें तो भी यह अब भी प्रासंगिक है। टूटते-बिखरते परिवार, आपसी कलह, विद्वेष पूर्ण सम्बन्ध, अनैतिक प्रतिस्पर्धा आदि पूरी तरह नियंत्रित करने को यह आवश्यक भी है।
कबीर ने ”राम” में देखा ‘आनंदस्वरूप’
डॉ. इंद्रजीत मिश्र के मुताबिक सामाजिक दोषों पर कुठाराघात करने वाले कबीर ने भी राम के अस्तित्व को स्थापित किया। कबीर ने सुख का वास्तविक मूल केवल आनंदस्वरुप राम माना है। कबीर कहते हैं कि ”सरबु तिआगि भजु केवल राम”। कबीर के ”राम” भी तुलसीदास ”राम” जैसे ही घट- घट में निवास करने वाले हैं, लेकिन इनके ”राम” निगुर्ण हैं। निरंजन, निराकार, सत्यस्वरुप व आनंदस्वरुप हैं। कबीर के राम और मनुष्य की आत्मा में दो भिन्न तत्व नहीं हैं। ”जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहरि भीतरि पानी”; में यह द्रष्टव्य है।
गोरखनाथ के ‘नमो नारायण’ हैं राम
वरिष्ठ पत्रकार राजीवदत्त पांडेय का कहते हैं कि सभी देवी-देवताओं के ‘साबर’ मंत्रों के जन्मदाता गोरखनाथ हैं। उन्होंने भी राम को स्थापित किया। नाथ और दसनामी संप्रदाय के लोगों के एक दूसरे से ‘आदेश और नमो नारायण’ कहने की परंपरा के रूप में आज भी देखा जाता है।
डॉ. मनोज कुमार जैन की मानें तो रामायण के नायक श्रीराम, जैन ग्रंथो में 63 शलाका पुरुषों में से एक हैं। ‘राम’ यहाँ बलभद्र हैं। जैन रामायण के नायक और अहिंसा की प्रतिमूर्ति हैं। जैन रामायण में राम का उल्लेख उनकी जन-जन में व्यापकता को सिद्ध करता है। विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं। थाईलैंड, इंडोनेशिया, नेपाल जैसे देश इसके उदाहरण हैं।
संस्कृति पर्व के संपादक संजय तिवारी कहते हैं कि हर पल, हर प्राणी के लोक-जीवन में स्थापित राम नाम, पूरे भारतीय साहित्य के केंद्र में है। यह वैश्विक क्षितिज पर विराजमान हैं। यह सत्य है कि साहित्य से वैश्विक क्षितिज और फिर आस्था के केंद्र में आते ही ‘राम’, ”श्रीराम”, ”सीया-राम” और ”राम-लखन-सीता” हो गए। और लोक-जीवन के अंतिम यात्रा तक ‘राम’ का जुड़ाव ”राम नाम सत्य है” के रूप में जगतव्यापी है। लोक-जीवन में ‘कबीर’, गोरखनाथ का ‘राम’ स्थापित है तो आराध्य’ के रूप में ‘तुलसीदास’ के राम । श्रद्धा और समर्पण के रूप में शबरी के राम हैं। भक्ति की पराकाष्ठा हनुमान के राम में और अहिल्या के राम में विश्वास के दर्शन होते हैं। सबके विश्वास में राम ही तो समाये हैं।
Publish by- shivam Dixit
@shivamniwan