कहतें हैं कि किस्मत का इस दुनिया में कुछ ऐसा खेल है जो कभी ऑटो चालक को मुख्यमंत्री तो कभी चायवाले को प्रधानमंत्री बना देता है, वैसे भी दुनिया चमत्कार को ही नमस्कार करती है चर्चा जीत की होती संघर्ष की नहीं अगर दिल वालों के शहर दिल्ली की बात करें तो भारत के सियासत की धूरी दिल्ली से ही तय होती है आज हम ऐसी शख्सियत की बात करेंगे जिनका सफर भी अर्श से फर्श तक पहुंचने जैसा है। आज हम उस नेता की बात करेंगे जो इस समय तो खराब समय की मार झेल रहा है हो सकता है आप उनको कुछ दिनों में सलाखों की चार दिवारी में भी देंखेगे, लेकिन यहां तक भी पहुंचने के लिए जिगरा चाहिए आरोप लगाना आसान होता लेकिन कहते हैं न कि झूठ की नींव पर राजनीति की इमारत खड़ी करना भी सबके बूते की बात नहीं होती वरना हर घर में इतना बड़ा नेता होता… आप समझ ही गए होंगे मैं बात कर रही हूं दिल्ली के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया की तो आईए जानते कैसे एक पत्रकार बन गया 18 विभागों को एक साथ संभालने वाला एक बहुचर्चित मंत्री….
कहा तो ये भी जाता है कि अगर आप अकेले चलते हैं तो आपकी दो टाईम की रोटी का इंतजाम हो सकता है लेकिन कुछ बडा नहीं कर सकते किसी न किसी साथ बहुत जरूरी होता है वही आपकी तस्वीर और तकदीर बदलता है…. आई इसी कड़ी में आपको बताते हैं कि मुख्यंमंत्री और उप मुख्यमंत्री का रिशता क्या कहलाता है
केजरीवाल और सिसोदिया की दोस्ती 2 दशक से ज्यादा पुरानी है। आम आदमी पार्टी के बुरे दौर से गुजरने पर कई नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ा लेकिन सिसोदिया लगातार इसे मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे रहेषजानिए कैसे एक पत्रकार बन गया इतना बड़ा राजनेता
परिवर्तन से शुरू हुआ सफर और दोस्ती हुई
इनकम टैक्स विभाग में बतौर अधिकारी काम करने के दौरान अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की मदद की और उनकी बेहतरी के लिए काम करना शुरू कर दिया । साल था 1998 उन्होंने इसके लिए परिवर्तन नाम के NGO और वेबसाइट से एक शुरुआत की। उस समय एक टीवी चैनल में काम करने वाले पत्रकार मनीष सिसोदिया ने एनजीओ पर स्टोरी की। इसके अगले दिन ही उनकी केजरीवाल से मुलाकात हुई. यहीं दोनों बन गया खास दोस्त
केजरीवाल ने इंटरव्यू में किया बड़ा खुलासा
केजरीवाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मनीष सिसोदिया पहले ऐसे इंसान थे जिन्होंने परिवर्तन को आगे बढ़ाने का काम किया। सामजिक क्षेत्र से जुड़े मनीष सिसोदिया पहले से ही कबीर नाम का एनजीओ चला रहे थे। इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए मनीष सिसोदिया ने नौकरी छोड़कर केजरीवाल के एनजीओ के साथ काम करने का बड़ा रिस्क लिया …. जो आमतैर पर साधारण दिमाग वाला इंसान नहीं ले पाता है…..
2006-07 तक केजरीवाल और मनीष सिसोदिया का राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था। दोनों सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे थे.।समाज सेविका अरुणा राय ने जब सूचना के अधिकार का मसौदा तैयार करने के लिए नौ लोगों की कमेटी बनाई थी तो उसमें मनीष सिसोदिया को सदस्य के तौर पर शामिल किया गया था। इससे लिए अरविंद केजरीवाल ने भी एक कार्यकर्ता के तौर पर काम किया। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे एक कार्यकरता दिल्ली का सीएम बन गया
2011 में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके कुछ साथियों ने मिल कर जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के आंदोजन में शामिल हुए। हालांकि बाद में दोनों दोस्तों ने समाज से हटकर अपने राजनितिक हित को साधने में जुड़ गए दुनियाभर में इसकी काफी चर्चा हुई. भूख हड़ताल हुई, लेकिन सरकार ने लोकपाल कानून नहीं बनाया। देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए राजनीति में आना जरूरी है, इसी सोच के साथ 2 अक्टूबर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की और मनीष सिसोदिया भी करप्शन फ्री सिस्टम के लिए केजरीवाल का समर्थन करते हुए राजनीति में कूद पड़े… और सियासी जमीन तलाशने में जुट गए मनीष सिसोदिया ने पटपड़गंज विधानसभा से पहला चुनाव लड़ा और उन्हें भरपूर दिल्लीवासियों का साथ मिला इसके बाद से उनके संघर्षों की कहानी का THE End….. हो गया हालांकि आज वो फिर से मुसीबत में हैं।
5 जनवरी 1972 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के फगौटा गांव में जन्मे मनीष सिसोदिया के पिता एक शिक्षक थे.. सिसोदिया ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव से पूरी की. इसके बाद भारतीय विद्या भवन जर्नलिज्म की पढ़ाई की और टीवी चैनल में बतौर पत्रकार काम करने लगे> 1996 में उन्हें ऑल इंडिया रेडियो में जीरो आवर प्रोग्राम की एंकरिंग करने का मौका मिला1997 से 2005 तक एक बड़े चैनल के लिए काम किया. इसी दौरान उनकी मुलाकात अरविंद केजरीवाल के साथ हुई फिर क्या दोनों सियासी भाईयों ने ताल से ताल मिलाकर आम जनती की कमजोरी यानी फ्री वो भी बिजली और पानी जैसे मूलभूत जरूरतें को पकड़ यहीं से अपनी सियासी सफर को एक नया रूप देने का प्रयास किया और फिर क्या था जैसे आम तौर पर होता कि लोग एक ही पार्टी में होकर सियासी कद को लेकर एक दूसरे को जानें अनजाने नीचा दिखाने का प्रयास करना एक आम बात होती है और इस तरह का रायता ऱाजनीति बालीबुड और पत्रकार खूब फैलता है।

