SC On Banke Bihari Temple: वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर जारी विवाद अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पहुंच चुका है। मंगलवार को हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि मंदिर से संबंधित सुविधाओं और प्रबंधन के लिए एक अंतरिम समिति गठित की जाएगी। इस समिति का उद्देश्य मंदिर की आय, सुविधाओं और सेवाओं का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित करना है।
क्या है विवाद की जड़?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए मंदिर की व्यवस्था को एक ट्रस्ट को सौंपने की योजना बनाई। इसके खिलाफ मंदिर से जुड़े गोस्वामी समाज और अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका कहना था कि यह मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार का इस पर नियंत्रण अनुचित है।
कोर्ट की टिप्पणी, देवता निजी कैसे हो सकते हैं?
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि श्रद्धालुओं की भारी संख्या और धार्मिक महत्ता के चलते इस स्थल को पूरी तरह निजी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा, “देवता निजी नहीं हो सकते, प्रबंधन निजी हो सकता है।” इस टिप्पणी ने मंदिर की सार्वजनिक भूमिका को उजागर किया।
श्याम दीवान की दलील, सरकार का हस्तक्षेप अनुचित
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने कहा कि सरकार मंदिर की आय से ज़मीन खरीदना चाहती है और योजनाएं बना रही है, जो मंदिर के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है। उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य सरकार ने एकतरफा आदेश पास कर मंदिर पर नियंत्रण की कोशिश की है, जो अनुचित है।
मंदिर की समिति और उसका संचालन
मंदिर का प्रबंधन एक समिति के माध्यम से होता है जिसमें चार सेवाधिकारी गोस्वामी, और तीन सामाजिक प्रतिनिधि होते हैं। समिति का गठन तीन साल के लिए होता है, लेकिन अंतिम चुनाव 2016 में हुआ था। इससे प्रबंधन की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की कार्ययोजना, होगा संतुलित विकास
कोर्ट ने संकेत दिए कि वो हाई कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज या वरिष्ठ जिला जज को इस अंतरिम समिति का अध्यक्ष बना सकता है। यह समिति मंदिर की दानराशि और व्यय की निगरानी करेगी और सुनिश्चित करेगी कि विकास के नाम पर कोई पक्षपात न हो।
धार्मिक पर्यटन और आधुनिक सुविधाएं
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उदाहरण दिए — तिरुपति, अमृतसर और शिरडी जैसे स्थलों का, जहाँ धार्मिक पर्यटन और आधुनिक विकास का बेहतरीन समन्वय देखने को मिलता है। कोर्ट ने कहा कि वृंदावन की पौराणिकता को बिना छेड़े, श्रद्धालुओं को सुविधाएं देना समय की मांग है।
मंदिर रहेगा धार्मिक, विकास रहेगा पारदर्शी
कोर्ट का रुख स्पष्ट है – रीति-रिवाजों में परिवार की भूमिका बनी रहेगी, लेकिन धन और व्यवस्था पर निगरानी के लिए एक न्यूट्रल ऑब्जर्वर जरूरी है। मंगलवार को फिर से सुनवाई होगी जिसमें अंतरिम समिति का प्रारूप सामने आ सकता है।
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