PM Modi: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को तमिलनाडु में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पूरी दुनिया को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अगर भारत की संप्रभुता पर हमला होगा, तो देश किस तरह मुंहतोड़ जवाब देगा। यह कार्यक्रम महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था, जिसे तमिल माह ‘आदि’ में आने वाले उनके जन्म नक्षत्र ‘तिरुवथिरई’ के रूप में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “दुनिया ने देखा कि अगर कोई भारत की सुरक्षा और संप्रभुता पर हमला करता है, तो भारत किस प्रकार से जवाब देता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह साबित कर दिया कि भारत के दुश्मनों और आतंकवादियों के लिए अब कोई सुरक्षित पनाहगाह नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा कि जब वह हेलीपैड से कार्यक्रम स्थल की ओर आ रहे थे, तो महज तीन-चार किलोमीटर की दूरी अचानक रोड शो में बदल गई। हर जगह ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रशंसा हो रही थी। लोगों में जोश और गर्व का भाव दिखाई दे रहा था।
प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देते हुए कहा, “ऑपरेशन सिंदूर ने पूरे देश में एक नई जागरूकता, एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है। दुनिया को भारत की ताकत का एहसास होना चाहिए।”
चोल सम्राटों को दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर चोल साम्राज्य के योगदान को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सम्राट राजराज चोल और उनके पुत्र राजेंद्र चोल-प्रथम भारत की पहचान और गौरव के प्रतीक हैं। उन्होंने घोषणा की कि तमिलनाडु में इन दोनों महान शासकों की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। ये प्रतिमाएं हमारे ऐतिहासिक गौरव के पुनर्जागरण के प्रतीक बनेंगी।
लोकतंत्र की भारतीय जड़ें – चोलों की ‘कुडवोलाई प्रणाली’
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र की प्राचीन परंपराओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब दुनिया में लोकतंत्र पर चर्चा होती है तो अक्सर इंग्लैंड के मैग्नाकार्टा का ज़िक्र होता है, लेकिन भारत की लोकतांत्रिक जड़ें उससे भी पुरानी हैं।
उन्होंने बताया कि चोल काल में अपनाई गई ‘कुडवोलाई प्रणाली’ एक उन्नत लोकतांत्रिक प्रक्रिया थी, जो आज से 1,000 साल से भी ज्यादा पुरानी है। प्रधानमंत्री ने कहा, “जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की धरती ने सदियों पहले ही लोकतंत्र की नींव रख दी थी।”
गौरतलब है कि मैग्नाकार्टा एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जिसे 1215 ई. में इंग्लैंड के राजा जॉन ने हस्ताक्षरित किया था। इसका उद्देश्य राजा की शक्ति को सीमित करना और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना था। परंतु, चोल काल में इससे भी पहले लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं भारत में लागू थीं, जो भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत को गौरवान्वित करती हैं।
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