Nag Panchami 2025: श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाने वाली नाग पंचमी का पर्व पूरे भारत में धार्मिक श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया। इस अवसर पर लोगों ने नाग देवता की पूजा कर अपने परिवार की रक्षा और समृद्धि की कामना की। घर-घर पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार नाग देवता की प्रतिमा बनाकर पूजा-अर्चना की गई।
शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़
इस पावन अवसर पर विभिन्न शिव मंदिरों में लंबी कतारें देखने को मिलीं। श्रद्धालुओं ने भोलेनाथ के शिवलिंग पर दूध, जल, बेलपत्र और फूल चढ़ाकर अभिषेक किया। भक्तों का मानना है कि नाग देवता भगवान शिव के गले का आभूषण हैं और इस दिन उनकी पूजा विशेष फलदायी होती है।
खेत की मिट्टी से जुड़ी लोक मान्यता
नाग पंचमी के दिन खास परंपरा के तहत लोग खेतों से मिट्टी लाकर अपने घरों में डालते हैं। मान्यता है कि जिस खेत से मिट्टी लाई जाती है, वहां नाग देवता की पूजा की जाती है और इस मिट्टी को घर में रखने से सांपों का भय नहीं रहता। यह लोकविश्वास वर्षों से लोगों की आस्था का हिस्सा बना हुआ है।
भुर्जिया की परंपरा-खेत से लाकर घरों में बोया गया अनाज
नाग पंचमी की एक विशेष परंपरा के अंतर्गत लोग शिव मंदिर के समीप स्थित खेत से मिट्टी लेकर आते हैं और उसमें भुर्जिया (अंकुरित अनाज) बोते हैं। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसे संपन्नता, संतुलन और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
श्रावण मास में नाग पंचमी का विशेष महत्व
श्रावण मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस मास के दौरान भगवान शिव की पूजा अत्यंत पुण्यदायक मानी जाती है। नाग पंचमी का पर्व भी इसी महीने में आता है, जिससे इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से सर्प दोष, कालसर्प योग जैसे ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि और शुभ मुहूर्त का पालन
श्रद्धालुओं ने नाग पंचमी के शुभ मुहूर्त में विधिवत रूप से पूजा की। नाग देवता की पूजा में दूध, कच्चा चावल, कुशा, दूब, हल्दी, सिंदूर, और फूलों का उपयोग किया गया। व्रत रखने वाले भक्तों ने दिनभर निर्जला व्रत रखा और संध्या के समय पूजा अर्चना के बाद प्रसाद ग्रहण किया।
परंपरा, आस्था और पर्यावरण संतुलन का प्रतीक
नाग पंचमी न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है बल्कि यह प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति सम्मान का भी प्रतीक है। नाग देवता की पूजा से यह संदेश मिलता है कि इंसान और सर्प जैसे जीवों के बीच संतुलन जरूरी है। ऐसे पर्व हमें हमारी संस्कृति से जुड़ने और पर्यावरण के संरक्षण की प्रेरणा भी देते हैं।
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