MP Bhim Singh: राज्यसभा में बिहार से बीजेपी सांसद भीम सिंह ने संसद में एक वाल दायर करते हुए गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के IATA कोड ‘GAY’ को “असम्मानजनक और सांस्कृतिक रूप से आपत्तिजनक” बताया और पूछा कि क्या सरकार इसे बदलने पर विचार कर रही है। उन्होंने दावा किया कि यह कोड आम लोगों को असहज करता है और इसे “अधिक सम्मानजनक” कोड में बदला जाना चाहिए।
नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोळ ने जवाब में कहा कि गया का कोड IATA द्वारा तय किया गया है, जो आमतौर पर किसी स्थान के पहले तीन अक्षरों पर आधारित होता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे कोड को केवल “अत्यंत विशेष परिस्थितियों” में ही बदला जा सकता है, जैसे कि एयर सेफ्टी से जुड़ी चिंताएं।
LGBTQ समुदाय का तीखा विरोध
इस बयान के बाद LGBTQ+ समुदाय में आक्रोश फैल गया। कार्यकर्ताओं ने भीम सिंह की सोच को “गंभीर पूर्वाग्रह और अज्ञानता” का उदाहरण बताया। सामाजिक कार्यकर्ता और LGBTQ अधिवक्ता अरविंद नरैन ने कहा कि “एक निर्वाचित सांसद अगर ‘GAY’ शब्द को अपमानजनक मानता है, तो यह LGBTQIA+ समुदाय के अस्तित्व के खिलाफ सीधा हमला है।” उन्होंने कहा, “व्यक्तिगत नैतिकता नहीं, बल्कि संविधानिक नैतिकता देश चलाती है।”
काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट और LGBTQ समर्थक शानमति सेंथिल कुमार ने इस मुद्दे को “गंभीर और समाज में गहराई से बैठे भेदभाव का संकेत” बताया। उनका कहना था कि इस तरह की सोच समाज को और अधिक हाशिए पर धकेलती है और समानता के खिलाफ जाती है।
संसद में सोच की परीक्षा, प्रगति की राह या पूर्वाग्रह की दीवार?
भारत आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहाँ वह वैश्विक मंच पर लैंगिक समानता और LGBTQ अधिकारों के पक्ष में बुलंद आवाज़ बनकर उभर रहा है। 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाना इसका ऐतिहासिक प्रमाण है। लेकिन हाल ही में संसद में उठे एक सवाल ने सोचने पर मजबूर कर दिया, क्या देश आगे बढ़ रहा है, या कुछ जनप्रतिनिधि अब भी बीते ज़माने की रूढ़ियों में उलझे हुए हैं?
‘GAY’ जैसे कोड से परेशानी नहीं है, असली परेशानी उस सोच में है जो समलैंगिकता को अब भी शर्म या अपराध का प्रतीक मानती है। सवाल सिर्फ टेक्निकल कोडिंग का नहीं है, सवाल इस बात का है कि क्या हमारी संसद नई पीढ़ी की सोच और संवैधानिक मूल्यों के साथ कदम से कदम मिला रही है?
सरकार भले ही स्पष्ट कर चुकी हो कि कोड में कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन असली बदलाव सोच में ज़रूरी है। एक समावेशी और आधुनिक भारत की पहचान उसकी तकनीक या कानून से नहीं, बल्कि उसके मूल्यों से होगी और उन मूल्यों में सबसे ऊपर है समानता, सम्मान और हर नागरिक की गरिमा।
अब समय है कि देश को रूढ़ियों की छाया नहीं, संविधान की रोशनी में आगे बढ़ाया जाए।
हमारी इंटर्न सुनिधि सिंह द्वारा लिखित
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