Karnataka News: धर्मस्थलेश्वर मंदिर से जुड़ी कर्नाटक की धर्मस्थल (Dharmasthala) मोनास्ट्री में हाल ही में सामने आई सनसनीखेज जानकारी ने पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय ध्यान की ओर खींचा है। कथित रूप से एक व्हिसलब्लोअर पिछले करीब दो दशकों से मंदिर प्रबंधन की कथित दरिंदगी का पर्दाफाश कर रहा है। वह दावा करता है कि 1995 से 2014 तक उसने महिलाओं और बच्चों के शवों को दफनाने या जलाने का काम किया था, कुछ मामलों में खुद ही।
रहस्यमयी मुखौटा‑धारी सूचना देने वाला
इस 48 वर्षीय दलित सफाई कर्मचारी ने अपनी पहचान छुपाने के लिए काले कपड़े, मुखौटे और चेहरे पर मास्क पहना हुआ था। हाल ही में जब उसे बेलठांगडी कोर्ट में पेश किया गया, तब भी उसका चेहरा पूरी तरह छिपा था। उसके पीछे भारी पुलिस सुरक्षा थी। कोर्ट में उसने BNSS की धारा 183 के अंतर्गत बयान दिया। आसपास बड़ी संख्या में लोग उन्हें देखने आए। उनमें कई लोग अपनी खोयी लड़कियों व बहनों की तस्वीरें लिए खड़े थे, उम्मीद थी कि सच सामने आएगा।
SIT का गठन और अपदस्थ SIP चीफ़
कर्नाटक सरकार ने 19 जुलाई 2025 को डीजीपी (इंटरनल सिक्योरिटी) प्रणब मोहंती के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (SIT) गठित किया। इस दल में DIG एम एन अनुचेत, SP जितेंद्र कुमार दयामा, और DCP सौम्यलता जैसे वरिष्ठ IPS अधिकारी शामिल हैं। लेकिन मामले की संवेदनशीलता के बीच SIT प्रमुख और वरिष्ठ IPS अधिकारी प्रणब मोहंती का अचानक केंद्रीय नियुक्ति के तहत ट्रांसफर हो जाना चर्चा का विषय बन गया है। यह कदम जांच की दिशा और निष्पक्षता पर उठ रहे सवालों को और गहरा कर गया है।
डर, आरोप, जांच और बंद मीडिया लिंक
व्हिसलब्लोअर ने आरोप लगाया है कि उसने महिलाओं के शवों को नदी के किनारे या जंगलों में दफना दिया था; कुछ शवों को तो उसने खुद ही खोदकर निकाला था और आधार कार्ड तथा कर्मचारी पहचान पत्र जैसे दस्तावेज वहीं रख दिए थे। 2014 में जब उसके परिवार में एक लड़की के साथ कथित हमला हुआ, तो वह आतंकित होकर गांव छोड़कर भाग गया। लगभग 10 वर्षों तक लापता रहने के बाद वह 2024 में वापस आया, अपराधबोध से प्रेरित होकर सच उजागर करने के लिए। उसने गिरफ्तार बलूतों के फोटो और पहचान पत्र पुलिस को सौंपे।
मंदिर प्रबंधन और संस्थान ने सभी आरोपों का खंडन किया है, बताकर उन्हें “अनाधिकारिक, प्रेरित और विश्वसनीय प्रमाणरहित” कहा है। वहीं कर्नाटक की डीएम और विपक्षी दलों ने SIT को स्वतंत्र और पूर्ण स्वायत्तता देने की मांग की है ताकि दोषियों को सज़ा मिल सके। बेंगलुरु सिटी सिविल कोर्ट ने एक गाग ऑर्डर जारी किया है, जिसमें 8,842 ऑनलाइन रिपोर्ट्स, वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट हटाने का आदेश दिया गया है, जिससे प्रेस स्वतंत्रता और जांच की पारदर्शिता पर फिर से बहस छिड़ गई है। मामला बढ़ना और भी अनिश्चित कर रहा है।
हमारी इंटर्न सुनिधि सिंह द्वारा लिखित
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