Jyoti Malhotra: “अगर मैं चाहूं तो भी अपनी बेटी का केस नहीं लड़ पाऊंगा…” ये शब्द हैं हरीश मल्होत्रा के, जिनकी बेटी ज्योति मल्होत्रा पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने जैसे संगीन आरोप लगे हैं। एक पिता की यह पीड़ा न सिर्फ न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि उन हजारों आम नागरिकों की कहानी भी बयां करती है जो आर्थिक संसाधनों के अभाव में अपने परिजनों की कानूनी लड़ाई नहीं लड़ पाते।
बेटी से मिलने तक का हक नहीं
हरीश मल्होत्रा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि ज्योति की गिरफ्तारी के बाद से वे न तो उससे मिल सके हैं, और न ही बात कर पाए हैं। पुलिस ने उनके घर की तलाशी के दौरान कई सामान जब्त किए थे, लेकिन आज तक कुछ भी वापस नहीं मिला। वह कहते हैं “ज्योति हमेशा एक डायरी अपने साथ रखती थी, लेकिन अब उसका भी कोई पता नहीं है।”
आर्थिक तंगी में टूटा एक पिता
हरीश की सबसे बड़ी चिंता यह है कि वह एक सक्षम वकील नहीं कर सकते। उनका कहना है कि “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि किसी अच्छे वकील को कर सकूं। मैं चाहूं भी तो केस नहीं लड़ पाऊंगा। यह मेरी सबसे बड़ी बेबसी है।” यह कहते हुए उनकी आंखें भर आती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि ज्योति पिछले ढाई साल से यूट्यूब पर वीडियो अपलोड करती रही है, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उसकी गतिविधियों को लेकर कोई जांच चल रही है।
बेटी के चरित्र पर सवाल, परिवार की चुप्पी
ज्योति मल्होत्रा (Jyoti Malhotra) की गिरफ्तारी ने न सिर्फ उसके परिवार को सामाजिक तौर पर अलग-थलग कर दिया है, बल्कि पड़ोस और रिश्तेदारों से भी दूरी बना दी है। हरीश कहते हैं “हम किसी को सफाई भी नहीं दे पा रहे। हर कोई सवाल करता है, पर कोई हमारी बात सुनने को तैयार नहीं।”
कानून के शिकंजे में परिवार
जासूसी जैसे गंभीर आरोपों के चलते केस बेहद संवेदनशील बन चुका है। सुरक्षा एजेंसियां और जांच अधिकारी ज्योति से जुड़ी हर गतिविधि को खंगाल रहे हैं। लेकिन इस जांच के बीच एक गरीब पिता की आवाज कहीं दब सी गई है, जिसे न तो अपनी बेटी से मिलने दिया जा रहा है, और न ही उसके पक्ष में न्याय की लड़ाई लड़ने का साधन मिल पा रहा है।