Fake Police Station: आज के समय में किसी पर भरोसा करना कितना मुश्किल हो गया है, कुछ ही हफ्ते पहले गाज़ियाबाद में पुलिस ने ऐसा खुलासा किया, जिसने सबको हैरान कर दिया। आपको बता दें कि गाज़ियाबाद में एक तथाकथित “फ़ेक एम्बेसी” काम कर रही थी, जो सरकारी और विदेशी पहचान का लालच देकर लोगों से ठगी करती थी। छापेमारी में फर्जी मोहरें, कूटनीतिक आईडी कार्ड और मंत्रालयों के नाम पर बनाए गए नकली दस्तावेज़ बरामद हुए थे। इस सनसनी के थमने से पहले ही, नोएडा में एक और हैरान करने वाला मामला सामने आ गया। यहां छह लोगों का गिरोह खुद को “इंटरपोल” और “इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन” का अधिकारी बताकर, खुलेआम एक फर्जी पुलिस स्टेशन चला रहा था।
सेक्टर-70 में खुले ठगी का धंधा
नोएडा पुलिस के मुताबिक, 4 जून को आरोपियों ने सेक्टर-70 में एक दफ़्तर किराए पर लिया। महज़ एक हफ्ते के भीतर वहां बोर्ड लगा दिए गए, जिनके Logo और रंग सरकारी पुलिस और केंद्रीय बलों के निशान से मेल खाते थे। दफ़्तर के भीतर मंत्रालयों के नाम से फर्जी प्रमाणपत्र, मोहर और दस्तावेज़ सजाए गए थे, ताकि कोई भी शख्स पहली नज़र में इसे असली समझ ले।
गिरोह में शामिल छहों आरोपी बिभाष चंद्र अधिकारी, अराग्या अधिकारी, बाबुल चंद्र मंडल, पिंटू पाल, समपद्मल और आशीष कुमार सभी पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जिलों के रहने वाले हैं। इनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि अलग-अलग है, कोई 12वीं पास नहीं, तो कोई कानून और कला में स्नातक हैं। पुलिस के अनुसार, ये लोग खुद को अंतरराष्ट्रीय अपराधों और अपराधियों पर काम करने वाला संगठन बताते थे और दावा करते थे कि उनका एक दफ़्तर यूनाइटेड किंगडम में भी है।
10 अगस्त की देर रात हुई पुलिस कार्रवाई में जो सामान बरामद हुआ, वह इस गिरोह की असलियत उजागर करने के लिए काफी था, 9 मोबाइल फोन, 17 स्टैम्प सील, 6 चेकबुक, 9 फर्जी आईडी कार्ड, 4 बोर्ड, मंत्रालयों के नाम से बने जाली प्रमाणपत्र, एक CPU, ₹42,300 नकद, प्रेस आईडी कार्ड और IHRC के नाम पर बनाए गए फर्जी पहचान पत्र। इनके पास वेबसाइट भी थी, जिस पर ये सारे प्रमाणपत्र दिखाकर लोगों से “डोनेशन” के नाम पर पैसे वसूलते थे।
सबसे बड़ा सवाल
इस पूरी घटना ने कई अहम और चौंकाने वाले सवाल सामने ला खड़े किए हैं जेसे की-
- क्या स्थानीय स्तर पर किसी को इसकी जानकारी थी या जानबूझकर अनदेखा किया गया?
- सेक्टर-70 जैसे व्यस्त इलाके में खुले इस दफ़्तर की महीनों तक जांच क्यों नहीं हुई?
- क्या ये सिर्फ छह लोगों का गिरोह है या इसके पीछे कोई बड़ा नेटवर्क है जो राज्य-राज्य घूमकर ऐसे ही ठगी के खेल खेलता है?
- गाज़ियाबाद के फ़ेक एम्बेसी केस और नोएडा के फ़ेक इंटरपोल केस में कोई सीधा या परोक्ष संबंध है?
- इन लोगों ने इतने सारे फर्जी दस्तावेज़, मोहर और Logo कहां से और कैसे तैयार करवाए?
पुलिस का कहना है कि शुरुआती जांच में किसी बाहरी ताकत की सीधी भूमिका नहीं दिखी है, लेकिन यह भी संभव है कि ये लोग एक बड़े ठगी नेटवर्क का हिस्सा हों। फिलहाल आरोपियों से पूछताछ जारी है, और पुलिस उनके बैंक रिकॉर्ड, कॉल डिटेल, डिजिटल डेटा और फर्जी दस्तावेज़ों की सोर्सिंग की जांच कर रही है।
इस तरह के मामले यह साफ़ करते हैं कि फर्जी संस्थाओं और नकली सरकारी पहचान के नाम पर ठगी का कारोबार कितनी तेजी से फैल रहा है। गाज़ियाबाद का “फ़ेक एम्बेसी” और अब नोएडा का “फ़ेक इंटरपोल” ये सिर्फ दो उदाहरण हैं, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या आने वाले दिनों में ऐसे और भी ठिकाने सामने आएंगे? और अगर आए, तो क्या हमारी जांच एजेंसियां और आम लोग इस तरह के झांसे को समय रहते पहचान पाएंगे?
हमारी इंटर्न सुनिधि सिंह द्वारा लिखित
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