Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जहां महागठबंधन (INDIA Bloc) ने 23 अक्टूबर को तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है, वहीं एनडीए (NDA) खेमे में अब तक सन्नाटा पसरा हुआ है।
राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी महागठबंधन की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुटकी लेते हुए कहा — “एनडीए को भी अब सीएम फेस घोषित कर देना चाहिए।”
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि एनडीए अब तक नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चेहरा क्यों नहीं बना पाया? आखिर क्या वजह है कि इस बार बीजेपी और जेडीयू के बीच सब कुछ पहले जैसा नहीं दिख रहा?
20 सालों से राजनीति के केंद्र में नीतीश कुमार
पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति का पर्याय बन चुके नीतीश कुमार ने कई बार महागठबंधन और एनडीए दोनों के साथ सत्ता चलाई है।
2005 से 2020 तक हर बार वे सीएम फेस रहे हैं — चाहे बीजेपी के साथ हों या विपक्ष के साथ। लेकिन 2025 का चुनाव अलग है। इस बार न तो उन्हें NDA ने औपचारिक सीएम फेस घोषित किया है, न ही वे खुद इस पद को लेकर उत्सुक दिखते हैं।
स्वास्थ्य और उम्र को लेकर उठे सवाल
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नीतीश कुमार की तबीयत अब पहले जैसी नहीं रही। कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी असहजता या भुलक्कड़पन की झलक देखने को मिली है — जैसे राष्ट्रगान के दौरान अचानक अभिवादन कर देना।
तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य नेताओं ने भी नीतीश की सेहत पर सवाल उठाते हुए कहा है कि “अब उन्हें राजनीति से विश्राम ले लेना चाहिए।” इन चर्चाओं के बीच बीजेपी भी शायद नीतीश को दोबारा सीएम फेस बनाकर जोखिम उठाना नहीं चाहती।
एंटी-इनकंबेंसी का साया अब भी बना हुआ है
2020 के चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ तेज एंटी-इनकंबेंसी लहर देखने को मिली थी। उनकी पार्टी जेडीयू (JDU) केवल 43 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि बीजेपी ने 74 सीटें जीती थीं। फिर भी बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन इस फैसले से पार्टी के भीतर कई नेताओं में असंतोष देखने को मिला।
इस बार भी प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकारों का कहना है कि “नवंबर में बिहार को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है, नीतीश युग खत्म हो रहा है।”
बीजेपी की रणनीति – बराबरी के आधार पर चुनाव
इस बार बीजेपी और जेडीयू दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। जबकि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 29 सीटों पर मैदान में है। इसके अलावा जीतन राम मांझी (हम) और उपेंद्र कुशवाहा (आरएलएम) की पार्टियां 6-6 सीटों पर लड़ रही हैं।
बीजेपी ने इस बार ‘छोटा भाई’ वाली भूमिका छोड़ दी है, और बराबरी की शर्त पर चुनावी मैदान में उतरी है। यानी साफ है कि पार्टी अब नीतीश पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती।
सुशील मोदी के निधन से खाली हुआ बड़ा राजनीतिक चेहरा
बिहार में बीजेपी के सबसे भरोसेमंद चेहरों में से एक सुशील कुमार मोदी का 13 मई 2024 को निधन हो गया। वे लंबे समय तक नीतीश कुमार के डिप्टी सीएम और पार्टी के सबसे स्वीकार्य नेता रहे।
उनके जाने के बाद से बीजेपी के पास ऐसा कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं बचा, जो बिहार में नीतीश का विकल्प बन सके। यही कारण है कि पार्टी CM फेस घोषित करने में हिचक रही है।
क्या महाराष्ट्र मॉडल लागू करेगी बीजेपी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार बीजेपी ‘महाराष्ट्र मॉडल’ को बिहार में लागू कर सकती है। यानी चुनाव के बाद अगर बीजेपी ज्यादा सीटें जीतती है, तो वह नीतीश कुमार को किनारे कर अपना मुख्यमंत्री बना सकती है।
जैसे महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ हुआ था। अशोक गहलोत ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था “महाराष्ट्र वाला खेला बिहार में भी दोहराया जा सकता है।”
नीतीश पर भरोसा या मजबूरी?
साल 2020 में बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाया था। लेकिन 2025 में समीकरण बदल चुके हैं।
केंद्र की सरकार अब नीतीश-नायडू गठबंधन के भरोसे चल रही है, और बीजेपी को हर कदम सोच-समझकर रखना पड़ रहा है। कह सकते हैं कि इस बार नीतीश पर भरोसा नहीं, बल्कि राजनीतिक मजबूरी ज्यादा दिखती है।
बिहार का चुनाव अब ‘चेहरों’ की जंग
बिहार में इस बार मुकाबला सिर्फ महागठबंधन बनाम एनडीए का नहीं है, बल्कि यह भरोसे बनाम अनुभव की जंग बन चुका है। एक ओर तेजस्वी यादव युवा चेहरा बनकर उभर रहे हैं, वहीं नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक साख बचाने की कोशिश में हैं।
बीजेपी के लिए यह चुनाव तय करेगा कि क्या बिहार में वह ‘मोदी ब्रांड’ से आगे बढ़कर नया चेहरा गढ़ पाएगी, या फिर एक बार फिर उसे नीतीश पर ही भरोसा करना पड़ेगा।
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