Cough Syrup Case: राजस्थान में हाल ही में कफ सिरप विवाद ने स्वास्थ्य विभाग को सतर्क कर दिया है। भरतपुर और सीकर जिलों में बच्चों की मौत के मामलों के बाद जांच की गई। रिपोर्ट में साफ हुआ कि इन बच्चों को प्रतिबंधित डेक्स्ट्रोमेथोर्फन कफ सिरप चिकित्सकों ने नहीं लिखा था।
डॉक्टर और फार्मासिस्ट पर कार्रवाई
सीकर जिले की हाथीदेह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक बच्चे को यह दवा लिखे जाने का मामला सामने आया। इस पर स्वास्थ्य विभाग ने कड़ा रुख अपनाते हुए चिकित्सक डॉ. पलक और फार्मासिस्ट पप्पू सोनी को निलंबित करने की कार्रवाई शुरू कर दी।
भरतपुर मामले की सच्चाई
भरतपुर के कलसाडा निवासी मोनू जोशी 25 सितंबर 2025 को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे थे। वहां उन्हें अन्य दवाओं के साथ डैक्ट्रामैट्रोफन हाइड्रो ब्रोमाइड दी गई। इसके बाद मोनू ने वही दवा अपने तीन वर्षीय बेटे गगन को बिना डॉक्टर की सलाह के पिला दी। गगन की हालत बिगड़ने पर उसे तुरंत जयपुर के जेके लोन अस्पताल रेफर किया गया। इलाज के बाद 27 सितंबर को बच्चा डिस्चार्ज कर दिया गया।
भरतपुर के दूसरे मामले में तीन बच्चों को खांसी की दवा दिए जाने की खबर सामने आई थी। रिपोर्ट के अनुसार सम्राट नामक बच्चा पहले से निमोनिया से पीड़ित था और 22 सितंबर को उसकी मृत्यु हुई। इस मामले में भी प्रतिबंधित कफ सिरप डॉक्टर द्वारा सीधे तौर पर नहीं लिखी गई थी।
सीकर मामले की रिपोर्ट
सीकर जिले के ग्राम खोरी निवासी नित्यांश की मौत से जुड़े मामले की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि डॉक्टर ने 7 जुलाई को बच्चे को यह दवा नहीं लिखी थी। उसकी मां ने घर में रखी हुई डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप बच्चे को दी थी। दुर्भाग्यवश, अगले दिन सुबह बच्चा मृत पाया गया।
स्वास्थ्य विभाग की एडवाइजरी
इस पूरे प्रकरण के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने एडवाइजरी जारी की। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि चिकित्सक दवा लिखते समय निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करें। मरीज केवल पर्ची से ही दवा लें और बिना चिकित्सकीय परामर्श के दवा न लें। खासकर बच्चों के इलाज में पूरी सावधानी बरती जाए।
मंत्री के निर्देश और जांच समिति
स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने इस मामले में तत्काल जांच के आदेश दिए। इसके बाद राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने दवा के वितरण पर रोक लगाई और तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। साथ ही, दवा के नमूने परीक्षण के लिए औषधि प्रयोगशाला भेजे गए हैं।
बड़ा सवाल बरकरार
रिपोर्ट में यह तो साफ हो गया कि मौतों के लिए सीधे डॉक्टर जिम्मेदार नहीं थे। लेकिन सवाल यह है कि राजस्थान में डेक्स्ट्रोमेथोर्फन जैसी प्रतिबंधित दवा का वितरण क्यों हो रहा है, जबकि यह तीन साल पहले ही दिल्ली में बैन की जा चुकी है।
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