Child Trafficking Exposed: गाजियाबाद की ट्रॉनिका सिटी पुलिस ने एक बड़े बाल तस्करी गिरोह का पर्दाफाश किया है। एक साल के मासूम फ़ारिस के अपहरण के बाद पुलिस ने महज चार घंटे में बच्चे को सकुशल बरामद कर चार आरोपियों को गिरफ्तार किया। यह गिरोह गाजियाबाद से लेकर नेपाल तक फैला हुआ था, जिसमें निजी अस्पतालों के डॉक्टर, नर्स, आशा वर्कर और मैरिज ब्यूरो संचालक तक शामिल हैं।
कैसे रची गई अपहरण की साजिश
4 अगस्त की दोपहर, गाजियाबाद के ट्रॉनिका सिटी स्थित पूजा कॉलोनी से एक साल के मासूम फरिस का अपहरण कर लिया गया। इस वारदात के पीछे मुख्य साजिशकर्ता अफसर अली और उसका साथी नवीद थे, जो लंबे समय से आर्थिक तंगी का सामना कर रहे थे। सावन के महीने में मांस की दुकान बंद होने से अफसर की आमदनी बंद हो गई थी और पैसों की तंगी ने उसे इस जुर्म की ओर धकेल दिया।
अफसर ने पड़ोसी राशिद के बेटे फरिस को अगवा करने की साजिश रची और इसमें अपने दोस्त नवीद को शामिल किया। इसके बाद, अफसर ने अपने पुराने संपर्कों शामली की स्वाति उर्फ सायस्ता और मुज़फ्फरनगर की संध्या, से संपर्क किया। ये दोनों महिलाएं एक मैरिज ब्यूरो चलाती थीं और बच्चों की तस्करी से जुड़ी गतिविधियों में संलिप्त थीं।
पहले उन्होंने बच्चे की तस्वीर व्हाट्सएप पर मंगवाई और फिर सौदे की बातचीत शुरू हुई। शुरुआत में मुरादाबाद के एक दंपत्ति से एक नर्स के जरिए 2.5 लाख रुपये में सौदा तय हुआ था, लेकिन बाद में यह बच्चा अमरोहा के एक दंपत्ति को 1.5 लाख रुपये में बेचने की योजना बनाई गई।
अपहरण के बाद, पुलिस से बचने के लिए नवीद ने अपना हुलिया बदल डाला, बाल कटवाए और कपड़े बदल लिए। लेकिन ट्रॉनिका सिटी में लगे सीसीटीवी कैमरों ने उसकी असली और बदली हुई दोनों हालत में तस्वीरें कैद कर लीं। इन्हीं तस्वीरों के आधार पर पुलिस को अहम सुराग मिले और जांच में तेजी आई।
पुलिस की मुस्तैदी से बच गया मासूम
CCTV फुटेज के आधार पर पुलिस ने कुछ घंटों में कार्रवाई कर नवीद (लोनी), अफसर अली (लोनी), स्वाति (शामली) और संध्या (मुज़फ्फरनगर) को लोनी के खड़खड़ी स्टेशन के पास से गिरफ्तार किया। बच्चे को लोनी तिराहे के पास से बरामद कर लिया गया। पुलिस के अनुसार, इस गिरोह का नेटवर्क दिल्ली, नोएडा, बिजनौर , मुरादाबाद, अमरोहा, जम्मू-कश्मीर और नेपाल तक फैला हुआ है।
यह गिरोह सोशल मीडिया पर बच्चों को ‘प्लॉट’ नाम के कोड से बेचता था। बच्चे के रंग, लिंग और उम्र के अनुसार रेट तय होते थे। गोरे बच्चों की कीमत 3-5 लाख तक, जबकि सांवले बच्चों की कीमत 50 हजार से 1 लाख तक थी।
क्या लोग अपने ही शहर में असुरक्षित हैं?
इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में गहरा डर और आक्रोश है। लोग कह रहे हैं कि जब बच्चों का अपहरण उनके घर के सामने से हो सकता है, तो कोई भी सुरक्षित नहीं है। बाल तस्करी का यह जाल बेहद संगठित है और इसमें कई प्रतिष्ठित पेशे से जुड़े लोग शामिल हैं।
पुलिस से क्या अपेक्षा है?
पुलिस की मुस्तैदी की सराहना हो रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि ऐसे संगठित अपराध को रोकने के लिए क्या ठोस निगरानी प्रणाली, सूचना तंत्र और साइबर निगरानी व्यवस्था बनाई जा रही है या नहीं? जनता की मांग है कि इस मामले में गहराई से जांच कर पूरे नेटवर्क को जड़ से उखाड़ा जाए और ऐसे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से सख्त सजा दी जाए।
हमारी इंटर्न सुनिधि सिंह द्वारा लिखित
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