Jagdeep Dhankhar: संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन सब कुछ सामान्य दिख रहा था। राज्यसभा में उपराष्ट्रपति और सभापति जगदीप धनखड सदन की कार्यवाही सामान्य तरीके से चला रहे थे। लेकिन जैसे ही सत्र का पहला दिन खत्म हुआ, रात को उन्होंने अचानक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपने इस्तीफे का ऐलान कर सभी को चौंका दिया। खास बात यह रही कि उन्होंने राष्ट्रपति भवन में बिना किसी अपॉइंटमेंट के पहुँचकर स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंप दिया।
इस घटनाक्रम के बाद पूरी रात सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। अगले दिन मंगलवार दोपहर तक देश की सियासी फिजा में सन्नाटा छाया रहा। फिर अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X पर महज तीन लाइन की पोस्ट में धनखड़ के स्वास्थ्य की कामना करते हुए उनकी सेवाओं का ज़िक्र किया। लेकिन इस बेहद संक्षिप्त संदेश के पीछे छिपी गंभीर चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी बनी चर्चा का विषय
प्रधानमंत्री के अलावा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे तमाम वरिष्ठ नेताओं ने भी न तो सोशल मीडिया पर कोई संदेश साझा किया और न ही सार्वजनिक बयान दिया। यहां तक कि कुछ मंत्रियों ने सामान्य दिनचर्या में जन्मदिन की बधाइयाँ तो दीं, लेकिन उपराष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद से इस्तीफा देने वाले व्यक्ति पर कोई टिप्पणी नहीं की।
तीसरी पंक्ति के नेताओं, जैसे कि सांसद रवि किशन, ही मीडिया के सामने आए और विपक्ष को नसीहत देते हुए कहा कि “स्वास्थ्य को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए।”
अगर इस्तीफा सामान्य होता तो ‘विदाई‘ भी होती…
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से होता, तो सरकार की ओर से सम्मानजनक विदाई दी जाती। खुद धनखड़ राज्यसभा में आते, फेयरवेल स्पीच देते और सभी सदस्यों से औपचारिक विदाई लेते। लेकिन न तो सदन में ऐसा कुछ हुआ और न ही कोई आधिकारिक ‘विदाई समारोह’ जैसा माहौल बना
महाभियोग प्रस्ताव और ‘फोन कॉल‘ थ्योरी
इस पूरे घटनाक्रम के पीछे जो थ्योरी सबसे अधिक चर्चा में है, वह है विपक्ष द्वारा जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को लेकर सरकार की असहजता। कहा जा रहा है कि सरकार नहीं चाहती थी कि यह प्रस्ताव इतनी जल्दी स्वीकार हो। लेकिन जब धनखड़ ने प्रस्ताव को मंजूरी दी, तो जेपी नड्डा और कानून मंत्री किरेन रिजिजू एक महत्वपूर्ण बैठक से गैरहाजिर रहे।
यह भी चर्चा है कि इस निर्णय के बाद धनखड़ को फोन कॉल आया, जिसमें सरकार की नाखुशी जाहिर की गई। इसे उन्होंने व्यक्तिगत अपमान के रूप में लिया और उसी रात तेवर दिखाते हुए इस्तीफा दे दिया। अपने बेबाक और मजाकिया अंदाज़ के लिए मशहूर जगदीप धनखड़ अपने सख्त रवैये के लिए भी जाने जाते रहे हैं।
क्या सरकार और धनखड़ के बीच था टकराव ?
इस पूरे घटनाक्रम की टाइमिंग, नेताओं की चुप्पी और विपक्ष के आरोपों को जोड़कर देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि मामला केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। विश्लेषकों की राय है कि यह इस्तीफा एक संवैधानिक टकराव का नतीजा हो सकता है, जहां उपराष्ट्रपति की स्वायत्तता सरकार की अपेक्षा के अनुकूल नहीं रही।
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