Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को रद्द करने की मांग जोर पकड़ रही है। कई याचिकाओं में यह तर्क दिया गया है कि यह कानून किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेता है। इसके विपरीत, कुछ याचिकाएं यह कहती हैं कि यह एक्ट धार्मिक स्थलों की सुरक्षा करता है और पूजा स्थल से जुड़े विवादों को रोकने में मददगार है।
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में कांग्रेस सरकार द्वारा लागू किया गया था। उस समय पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। यह कानून राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के समय देश में बढ़ रहे धार्मिक विवादों और तनाव को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था। इस कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि:
- 1947 की स्थिति बनी रहेगी: 1947 में देश के विभाजन के समय जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसे उसी रूप में बनाए रखा जाएगा।
- याचिकाओं की मनाही: धार्मिक स्थल की संरचना में बदलाव या उस पर दावा करने वाली किसी भी याचिका को खारिज कर दिया जाएगा।
- सजा का प्रावधान: इस कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माना लगाया जा सकता है।
क्यों हो रही है इस एक्ट को रद्द करने की मांग?
यह कानून कहता है कि 1947 के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था, उसे वैसा ही रखा जाएगा और इसके खिलाफ किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं होगी। लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद, संभल मस्जिद और अन्य विवादित स्थानों को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
हिंदू पक्ष का कहना है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की तरह अन्य विवादित स्थलों की भी जांच होनी चाहिए। यदि उन स्थानों पर मंदिर होने की पुष्टि होती है, तो वहां मंदिर का पुनर्निर्माण होना चाहिए। लेकिन यह एक्ट उन दावों की सुनवाई को रोक देता है, जिससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही है। इसी कारण कई धार्मिक समूह इस कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में यह कानून क्यों लागू नहीं हुआ?
1991 में जब यह कानून बनाया गया था, तब संसद ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर यह कानून लागू नहीं होगा। इसके चलते इस विवाद पर लंबे समय तक सुनवाई चली और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। अब राम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है।
हालांकि, अब अन्य मंदिर-मस्जिद विवादों में यह कानून बाधा बन रहा है। इस वजह से धार्मिक समूहों और संगठनों का कहना है कि इस कानून को रद्द किया जाना चाहिए, ताकि सभी पक्ष अपनी धार्मिक भावनाओं से जुड़े स्थलों पर दावा कर सकें।
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क्या कहता है कानून का समर्थन करने वाला पक्ष?
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थकों का कहना है कि यह कानून धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति को बनाए रखकर शांति और सद्भाव को बनाए रखने में मदद करता है। उनका तर्क है कि इस कानून के बिना, देश में धार्मिक विवाद और हिंसा बढ़ सकते हैं।