कांग्रेस राहुल गांधी के ट्विटर अकाउंट बैन होने पर बिफर पड़ी है। पार्टी ने आरोप लगाय है कि ट्विटर केंद्र सरकार के दबाव में काम कर रहा है…ट्विटर ने इसके पहले आरएसएस-भाजपा के कई शीर्ष नेताओं और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के ट्विटर अकाउंट से भी ब्लू टिक हटाने और कुछ समय के लिए उन्हें सस्पेंड करने की कार्रवाई की थी। ऐसे में राहुल गांधी ट्विटर की कार्रवाई से इतने नाराज क्यों हैं?
कांग्रेस का कहना है कि ये सिर्फ बैन का मामला नहीं है बल्कि यह एक राष्ट्रीय दल के विचारों को उसके समर्थकों तक पहुंचने से रोकने का मामला है। इससे भी आगे बढ़कर यह केंद्र सरकार की विफलताओं के विरोध में उठने वाली किसी भी आवाज को दबाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता को रोकने की कोशिश करने का मामला है। कांग्रेस पार्टी इसका हर स्तर पर विरोध करेगी।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने देश के हर मीडिया संस्थान पर दबाव बना रखा है, विपक्ष की आवाज को लोगों तक पहुंचने नहीं दिया जा रहा है, अघोषित आपातकाल लगाकर सरकार केवल अपनी मनमानी कर रही है। ऐसे समय में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स विपक्ष के लिए एक मजबूत माध्यम बनकर उभरे हैं, जिसके माध्यम से बिना तोड़-मरोड़ के हमारी बात हमारे लोगों तक और देश की जनता तक पहुंच रही थी, लेकिन सरकार अब अप्रत्यक्ष नियंत्रण कर इस पर भी अपनी मनमानी करना चाहती है।
वहीं, भाजपा का कहना है कि विपक्ष हमेशा ‘विक्टिम कार्ड’ (स्वयं को पीड़ित बताकर लोगों की सहानुभूति पाने की कोशिश) खेलकर स्वयं को सही साबित करना चाहता है, जबकि उसे पता होना चाहिए कि चंद दिनों पहले ट्विटर ने भाजपा और आरएसएस के नेताओं के एकाउंट्स के साथ भी इसी प्रकार की कार्रवाई की थी।
भाजपा नेता ने कहा कि जब आरएसएस-भाजपा नेताओं के अकाउंट्स के साथ छेड़छाड़ हुई तब किसी भाजपा नेता ने इसके विरोध में आवाज नहीं उठाई। संघ के किसी नेता ने तो इसके विरोध में कोई टिप्पणी तक नहीं की। ऐसे में राहुल गांधी को अपना काम करने का और सोचने का तरीका बदलना चाहिए। हालांकि, ट्विटर ने कांग्रेस नेताओं के अकाउंट्स को बंद करने के पीछे अपने सोशल मीडिया स्टैंडर्ड्स का पालन न करने की बात कही थी। दिल्ली में एक नौ वर्षीय बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म की फोटो पर उपजे विवाद के बाद ट्विटर ने राहुल गांधी, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी सहित दर्जनों नेताओं के अकाउंट्स को प्रतिबंधित कर दिया है।
दरअसल, सभी दलों के नेताओं ने सोशल मीडिया को अपने समर्थकों तक पहुंचने का प्रमुख हथियार बना रखा है। इस पर अपनी बात कहकर वे एक बार में ही लाखों कार्यकर्ताओं तक सीधे अपनी बात कह पाते हैं। वहीं, उनकी बात बिना किसी तोड़-मरोड़ के मीडिया संस्थानों तक भी पहुंच जाती है। देश में ज्यादातर लोगों के पास लगातार बढ़ती स्मार्टफोन की उपलब्धता उन्हें लोगों से सीधा संपर्क स्थापित करने में मदद देती है। सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे कैंपेन नेताओं को बेहद सस्ती कीमत पर एक आंदोलन चलाने का अवसर प्रदान करते हैं। यही कारण है कि सभी दलों के नेताओं, संगठनों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का एक अहम हिस्सा हो गए हैं और वे इस पर किसी भी कार्रवाई को स्वीकार नहीं करते हैं।
स्टोरी- विद्यासागर शुक्ला