झांसी: जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने कलेक्ट्रेट स्थित कक्ष में विलुप्त होने की कगार पर बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण देने के लिए बैठक आयोजित की। उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में वहां की सभ्यता एवं सांस्कृतिक विरासत उस क्षेत्र की गरिमा का प्रतीक होती है।
जिलाधिकारी ने कहा कि किसी भी देश में वहां की सभ्यता एवं सांस्कृतिक विरासत उस देश की गरिमा को बढ़ाती है। हमारे सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक स्मारक जो पुरातत्व विभाग की सूची में दर्ज है वह तो संरक्षित होते हैं परंतु जनपद में अनेक ऐसी इमारतें, भवन मीनार, झील,पहाड़ियां हैं जो किसी भी स्तर से संरक्षित नहीं है।ऐसी धरोहर को संरक्षित करने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयास किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि इन्हें नष्ट होने से बचाया जा सके।
उन्होंने संबंधित एसडीएम को उक्त जानकारी एकत्र किए जाने के निर्देश देते हुए कहा कि गांव से जुड़ा कोई इतिहास, गांव की स्थापना से लेकर कोई कहानी, प्रमुख स्थान से जुड़ी कोई कहानी यदि कोई उसका विवरण है तो उसको भी एकत्र किया जाए। इसके साथ ही ग्राम में खानपान को लेकर यदि कोई विशिष्ट प्रकार का व्यंजन बनता है उसका विवरण, ग्राम में खेले जाने वाले खेलों का विवरण, गांव में मनाऐ जाने वाले कुछ अलग किस्म के त्योहार, गांव में ऐसी महिलाएं जिन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण कर गांव का गौरव बढ़ाया है।
ग्राम में पैदा की जाने वाली सब्जी तथा ग्राम में पैदा की जाने वाली मुख्य फसलें,ग्राम में कोई सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, साहित्य, कला, संगीत व नृत्य आदि का कोई पारंपरिक प्रचलन है तो उसको भी चिन्हित करते हुए सूचीबद्ध किया जाए ताकि उसे प्रोत्साहित करते हुए संरक्षित किया जा सके। उन्होंने इस अभियान को गांव-गांव की गौरव गाथा खोज नाम देते हुए कहा कि एक सप्ताह में समस्त जानकारियां उपलब्ध कराएं।
जिलाधिकारी ने अधिकारियों, निदेशक राजकीय संग्रहालय, पर्यटन, क्षेत्रीय सांस्कृतिक अधिकारी सहित होटल एसोसिएशन, होटल संचालक आदि से बुंदेलखंड क्षेत्र की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं इससे जुड़े कलाकारों को सांस्कृतिक एवं आर्थिक सहयोग प्रदान किए जाने तथा उन्हें प्रोत्साहित किए जाने पर चर्चा करते हुए कहा कि लोक गायन, लोक वादन कचहरि व स्वांग, नृत्य, बांसुरी, शहनाई वादन, ढिमरयाई नृत्य, सितार,लोक नृत्य दल, लोक गायन व नृत्य दल, पखावज़ व मृदंग वादन, लोक संगीत-वंशी, हारमोनियम, बांसुरी, लोक गायन, संगीत वादक ढोलक, मृदंग वादक, भजन व लोक नृत्य आदि 20 कलाकार हैं, इन सभी की कला और कलाकारों को संरक्षित किया जाना है।