यूपी विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मणों को रिझाने की कवायद शुरू हो गई है। इसमें सबसे आगे बहुजन समाज पार्टी है। बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की अगुआई में प्रदेश भर में प्रबुद्ध वर्ग के सम्मेलन (ब्राह्मण सम्मेलन) शुरू कर दिए है।
2022 के विधानसभा चुनाव से अचानक ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की जुगत में जुटीं राजनीति पार्टियां अलग-अलग तरीके से रणनीति बना रही हैं। वहीं ब्राह्मणों को केंद्र में रखकर आयोजित कार्यक्रम में बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता अपने पुराने नारों ”ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता चला जाएगा…” और ”हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है…” पूरा फोकस करते नजर आए।
प्रबुद्ध वर्ग के सम्मेलन में पूरे कार्यक्रम के दौरान ये नारे बार-बार लगाए जा रहे है। सतीश चंद्र मिश्रा के मंच पर पहुंचते ही ब्राह्मणों द्वारा स्वस्ति वाचन किया जा रहा है। ”ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता चला जाएगा…” की लगातार अनुगूंज होती रही। ब्राह्मणों को रिझाने में अन्य नेता भी कोई चूक नहीं कर रहे है मंच से बाकायदा भगवान परशुराम का जयकारा लगवाया जा रहा है। सतीश मिश्रा को फरसा और भागवान परशुराम के चित्र भेंट किए जा रहे है।
हालांकि कुछ जातियों को लक्ष्य करके बनाए गए कुछ विवादास्पद नारे बीएसपी को आज भी परेशान करते हैं। लेकिन बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने साफ़ कर दिया कि ‘वो नारे’ न तो बीएसपी की किसी सभा में कभी लगे हैं और न ही बीएसपी के किसी नेता ने कभी लगाए हैं।
बहुजन समाज पार्टी ने इससे पहले साल 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के तहत ब्राह्मणों को अपनी ओर जोड़ने का बड़ा अभियान चलाया था जिसकी बदौलत राज्य में पहली बार उसकी बहुमत की सरकार बनी थी। उस दौर में बीएसपी से जुड़े तमाम बड़े नेता, जिनमें कई ब्राह्मण भी हैं, आज दूसरी पार्टियो में शामिल हो चुके हैं। क़रीब 14 साल बाद बीएसपी उसी सोशल इंजीनियरिंग के फ़ॉर्मूले को एक बार फिर अपनाना चाहती है।
अब चुनाव पूर्व सोशल इंजीनियरिंग का परिणाम साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कितना असरकारी होता है, ये तो वक़्त ही बताएगा। बरहाल “सत्ता की चाभी लेने के लिए 13 फ़ीसद ब्राह्मण अगर 23 फ़ीसद वाले दलित समाज के साथ मिल जाएं तो जीत सुनिश्चित है. जिसकी जितनी तैयारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। इसी आधार पर फ़िलहाल बसपा चल रही है।
जहां तक ब्राह्मणों को जोड़ने की बात है तो कोरोना संक्रमण से पहले भी समाजवादी पार्टी समेत अन्य दलों ने भी ये कोशिशें शुरू कर दी थीं। उस वक़्त परशुराम की मूर्तियों की स्थापना की होड़ चली। यह वही समय था जब पिछले साल कानपुर में विकास दुबे और उनके कई साथी कथित एनकाउंटर में मारे गए थे।
इसके अलावा भी कई ब्राह्मणों का एनकाउंटर हुआ था और विपक्षी दल इस बात को मुद्दा बना रहे थे कि मौजूदा सरकार ब्राह्मणों की विरोधी है। उस समय कांग्रेस पार्टी भी इस बारे में काफ़ी मुखर हुई थी और पार्टी के उस वक़्त के नेता जितिन प्रसाद ने बाक़ायदा ‘ब्राह्मण चेतना मंच’ नाम की संस्था बनाई थी। लेकिन अब जितिन प्रसाद ख़ुद बीजेपी में आ गए हैं।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या क़रीब 11-12 फ़ीसद है। हालांकि कुछ ज़िले ऐसे भी हैं जहां इनकी संख्या क़रीब बीस फ़ीसद है और उन जगहों पर ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान उम्मीदवार की जीत और हार तय करता है। ऐसा माना जा रहा है कि बीएसपी की नज़र उन्हीं ज़िलों और विधानसभाओं पर है।
पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, मेरठ के अलावा ज़्यादातर ऐसे ज़िले पूर्वांचल और लखनऊ के आस-पास के हैं। जानकारों का कहना है कि यदि बीएसपी के परंपरागत मतदाताओं के अलावा ब्राह्मण मतों का कुछ हिस्सा भी बीएसपी को मिल जाता है तो निश्चित तौर पर उसे फ़ायदा पहुंच सकता है।
अब देखने वाली बात यह होगी की ब्राह्मणों को रिझाने के लिए बसपा के ये पुरानें नारे कितने कारगार रहेंगे ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
Author by- shivam Dixit
@shivamniwan