– कोर्ट के आदेश को अधिकांश महिलाओं ने बताया भारतीय सामाजिक ताने-बाने के विपरीत
कोलकाता :- केरल हाई कोर्ट के शुक्रवार को आए एक ऐतिहासिक फैसले के बाद देशभर में एक नई बहस छिड़ गई है। कोर्ट ने पत्नी की मर्जी के बगैर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने को दुष्कर्म की श्रेणी में रखने और रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश सुनाया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद पूरे देश में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों में मतभेद उभर कर सामने आए हैं। अधिकांश महिलाओं ने इस फैसले को भारतीय सामाजिक ताने-बाने के बिल्कुल विपरीत बताते हुए कहा कि अगर इसे लागू किया गया तो कई घर टूट सकते हैं।
इस मुद्दे पर पूर्व सांसद और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की अध्यक्ष मालिनी भट्टाचार्य ने कहा कि कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के लिए एक बड़ा कदम है। लेखक-प्रोफेसर मीरातुन नाहर ने भी फैसले का स्वागत किया। जबकि भाजपा की राज्य सचिव संघमित्रा चौधरी और सामाजिक कार्यकर्ता नंदिनी भट्टाचार्य ने इसका विरोध किया है। मिरातुन नाहर ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत करते हुए कहा कि इसे ठीक से और सावधानी से लागू करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि रूस ने भी यही नियम लागू किया है। यदि इसे कानून का रूप दिया जाता है, तो पत्नियां अपने पतियों को परेशान कर सकती हैं। ऐसे सभी कानूनों के दुरुपयोग का खतरा है। हालांकि केरल ने हमें कई तरह से रास्ता दिखाया है। मैं केरल हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करती हूं। इस मुद्दे पर मोदी सरकार के रुख की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने तीखी आलोचना की। पूर्व नौकरशाह और लेखिका अनीता अग्निहोत्री ने हालांकि कुछ भी टिप्पणी करने से इन्कार किया।
ऑल बंगाल मेन्स फोरम की अध्यक्ष नंदिनी भट्टाचार्य ने कहा कि इस फैसले में महिलाओं के अधिकारों को क्यों शामिल किया जाना चाहिए? क्या वैवाहिक बलात्कार पुरुषों के लिए नहीं हो सकता? वे कोर्ट नहीं जाते? क्या यह सिर्फ महिलाओं के लिए है? और अगर ऐसा है तो क्यों? यह बड़ी चर्चा का विषय है और महिलाओं को छोड़िए मैरिटल रेप किसी के साथ भी हो सकता है।
भाजपा नेता और फिल्म निर्देशक संघमित्रा चौधरी ने कहा, “आज कानूनी दुनिया में उथल-पुथल है कि क्या शादी में बलात्कार शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है। जिस तरह शादी के बाद पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध सामान्य होते हैं, उसी तरह पति को अपनी पत्नी की इज्जत की रक्षा के लिए उसकी इच्छा और अनिच्छा को महत्व देना चाहिए। लेकिन अगर इस मुद्दे को कानून के दायरे में लाया जाता है तो कई महिलाएं अपनी मर्जी से पति के खिलाफ जा सकती हैं और कानून का सहारा लेकर पति को बेवजह परेशान कर सकती हैं। मैं कह रहा हूं कि एक महिला होने के नाते कई पत्नियों ने कई मामलों में धारा 498 का दुरुपयोग किया है। पति समेत कई ससुराल वाले कोर्ट जा चुके हैं और जेल से रिहा नहीं हुए हैं। इसलिए कोर्ट को मामले की अहमियत के हिसाब से कानूनी फैसला लेना चाहिए। जब किसी मामले को अंतिम कानून के तहत लाया जाता है, तो उसके नकारात्मक प्रभावों पर पहले विचार किया जाना चाहिए। शादीशुदा मर्दों को लेकर भी कई मामलों में ऐसा देखा गया है। जब शादी की बात आती है तो पुरुषों के साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है।
पूर्व प्रोफेसर मालिनी देवी ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा, ”हम लंबे समय से विभिन्न हलकों में इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के हित में, बर्मी आयोग ने 2013 में निर्भया कांड के मद्देनजर भारतीय दंड संहिता, आपराधिक संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कई बदलावों की सिफारिश की। लेकिन इसने वैवाहिक बलात्कार को महत्व नहीं दिया।”
वहीं मालिनी भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा-आरएसएस लड़कियों को हक नहीं देना चाहती। यह लड़कियों की पसंद, व्यक्तिगत सम्मान को आहत करता है। लड़कियों के व्यक्तित्व को खत्म किया जाता है। हालांकि, प्राचीन सुधार की बात है। समाज का एक निश्चित विचार होता है। कोर्ट का फैसला कानून नहीं है। कुल मिलाकर, नारीवादी कार्यकर्ताओं ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया है। विरोधियों का कहना है कि अगर इसे वैध कर दिया गया तो जटिलताएं होंगी।
उल्लेखनीय है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई सामाजिक और महिला संगठनों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसका मोदी सरकार ने विरोध किया था। सरकार का तर्क है कि भारत जैसे देश में साक्षरता और वित्तीय क्षमता की कमी जैसी समस्याएं हैं। समाज की मानसिकता, विविधता, गरीबी भी एक समस्या है। इसलिए इस संबंध में पश्चिमी देशों का आंख मूंदकर अनुसरण नहीं किया जा सकता है।